Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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रहित अने पांत्रीश गुण सहित, नय निक्षेप पक्ष प्रमाण युक्त जीवा जीवादि तत्त्वनो सम्यक प्रकारे उपदेश प्रापो छो ए श्रापनो कमें उदय निर्विवाद् पणे "भवि जन धर्म सहाय” अनादि कालथी ज्ञानावरणादि कर्म रज बडे मलिन थएला-लिस थएला भव्य जीवोना भास्म धर्मने एवंभूत नये प्राप्त थवा सहाय-निमित्तभत छे. तथा हे तीर्थनाथ ! प्रापना नामादिक चार निक्षेप संभारतस्मरण करतां-लक्षमां लेतां मिथ्यास्वादि दुष्ट दोषोनो तत्काल अत्यंत प्रभाव थाय. “ तीर्थसंसार निस्तरणो-पायं करातीति तीर्थकृत्" इति वचनात्. जन्म मरण रूप संसार सागरथी तरी जवानो उपाय जे सम्यगदर्शन ज्ञान चारित्र ते तीर्थ छे. उक्तंच तत्वार्थ सूत्रे " (सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः)" ते रस्नत्रयरूप तीर्थने भव्य जीवोना हृदयमा स्थापन करनार पुष्ट निमित्त होवाथी श्राप तीर्थकर नामने संप्राप्त छो. तथा अापना निर्मल असंख्यात् आत्म प्रदेशमा ते रत्नत्रय भरपूर अभेद्य पणे वसी रह्यां छे ते स्थापनानिक्षेपो. तथा मापनो धास्म द्रव्य ते