Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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११८ • शक्त्या; भवति नियतमेषां, शुद्ध तत्त्वोपलम्भः । अचलित मखिलान्य द्रव्यं दूरे स्थिताना, 'भवति सात च तस्मिन्न क्षयः कर्म मोक्षः॥
अर्थ:-जे पुरुष भेद विज्ञाननी शक्तिवडे प्रात्म स्वरूपना महिमामां लीन थाय छे तेने निश्चय शुद्ध तत्त्वनी प्राक्षि थाय छ; अने शुद्ध तत्त्वनी प्राप्ति थवाथी सर्व परद्रव्य तथा परद्रव्यना परिणामथी दूर वर्त्त छ, अक्षय मोक्ष अवस्थाने प्राप्त थाय छे. माटे ज्यांसुधी भेद विज्ञाननी प्राप्ति थई नथी त्यांसुधी अवश्य मर्वे समय कर्मबंध थाय छे भने भेद विज्ञानवडे कर्मबंधथी मुक्त थवाय छे. " भेद विज्ञान तः सिद्धाः, सिद्धा ये किल केच न । तस्यैवा भाक्तो नद्धा, बद्धा ये किल केच न"
अर्थ:-जे कोइ सिद्ध थया ते भेद विज्ञान बडेज सिद्ध थया के अने जे कर्मथी बंधाय छे ते भेद विज्ञानना अभावधीज बंधाय घे माटे जो कर्म