Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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२२५ अनुकंपादि लक्षणे युक्त, तथा कुशलता, तीर्थसेवा, . गुरुभक्ति, दृढता तथा शासननी अनुमोदना विगेरे भूषणोथी भूषित, शंका, कांक्षादि सर्वे विसंवाद दाली अविसंवादताने स्थिर दृढपणे पोताना हृदयमां धारण करतो महा विनयवंत, श्रापना शासननो प्रभावक गुणनिधान एवो " सम्यदर्शन” नामे महाधीर वीर शुभट आपनो मित्रं छे, जेनी साथे आपनो सम्यक्ज्ञान प्रधान पण एटली तिब्र मंत्री राखे के के क्षणमात्र पण तेथी छूटो पडी शकतो नथी, जेउनां अंग मात्र जूदा जणाय छे पण जीव तो जाणे. एकज छे ।
___एवा सम्यक्दर्शन अने सम्क्ज्ञान छ महान् पुरुषो श्रापर्नु राज्य अत्यंत चातुर्य,न्याय अने दया पूर्वक सर्व प्रजाने श्रानंदमा राखता निष्कंटकपणे चलावे छे तथा अव्यायाध समाधिरूप अनेक प्रकारना रत्नो. वडे आपना खजानाने सदा परिपूर्ण तथा अखूट राखे छे,निरंतर तज्जन्य परमानमा आपविलसो छो; __ वली श्राप ज्यांनुं राज्य करो छो ते देश असंख्यात. प्रदेशवालो, जेन सीमामा कोइपण वधघट करी शके नहीं एवो छे तथा जेना सर्वे प्रदेश