Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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( पुष्ट हेतु जिनेंद्रोयं मोक्ष सद्भांव साधने),
अपुष्ट निमित्त-जेमा साध्या पद विद्यमान न होय, जे कर्त्तानी प्ररेणाथी कारण थाय छ, वली. तेमांध्वंसक भाव पण रहेलो होय ते अपुष्ट निमित्त छे. जेम दंड ते घटनु अपुष्ट निमित्त . कारण के दडमां घर पणुं विद्यमान नथी वली कुंभार ज्यारे घट करवामा प्रवर्तीवे तोज घंटोत्पत्तिनु निमित्त कहेवाय पण जो कुंभार घट ध्वंस करवामां वापरे तो ते घट ध्वंसना निमित्त कहेवाय माटे दंड.ते घटनु अपुष्ट कारण जाणवू. माटे हे रुषभानन भगवंत ! श्राप मारा परमात्मपदना पुष्ट निमित्त छो माटे पापनीज सेवाथी मारी सिद्धि थशे एम जाणी आपनीज सेवा अंगीकार करुं छु..॥ ६॥ ,
शुद्ध तत्त्व निज संपदा, ज्यां लगे पूर्ण न. __ थाय ॥ जि०॥ त्यां लगे जगगुरु देवना, सेवु चरण सदाय ॥ जि० ॥ श्री० ॥ ७॥ :
अर्थः-भज्ञानरूप अंधकारनो अत्यंन नाय करनार तथा सम्यक्ज्ञान दर्शन ' चारित्र आदि संपूर्ण मात्म गुणनी सिद्धिने प्राप्त होक थी जगत