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ते रागमांथी उत्पन्न थनारो भाव छे. अर्थात् द्वेषनुं कारण पूर्वमां व्यक्ति प्रत्ये रहेलो राग छे. ज्यां राग थयो होय त्यां काळान्तरे प्रायः द्वेष थाय छे एटले संसारनुं मूळभूत कारण राग छे.
राग प्रशस्त अने अप्रशस्त बे प्रकारनो छे अमूक मर्यादा सुधी प्रशस्त राग आगुळ वधारनारो थाय छे तो पण अन्ते तो छोडवा योग्यज छे.
राग वगरनी स्थिति ते विरागस्थिति छे, अने तेनो भाव ते वैराग्य छे आ वैराग्य पामवो जोके आ काळमां अति मुश्केल छे कठिन छे तो पण अशक्य तो नथी ज़. एटले आत्मकल्याणी आत्माए वैराग्य प्राप्त करवो ज जोईए.
वैराग्य, वैरागी जीवोनो परिचय राखवाथी प्राप्त थाय छे, वैराग्य विषयवाळा पुस्तकना वाचनथी प्राप्त थाय छे, कुदरती वातावरणना फेरफारथी तथा दुःखना निमित्तो वगेरेथी वैराग्य प्राप्त थाय छे. गमे तेनाथी वैराग्य थाय पण जीवनमां वैराग्य आवे ए इच्छवा योग्य छे. आ पुस्तक वैराग्यना विषय वाळं छे. रागनुं पोषण करनारा पुस्तको जगतमां