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श्री वैराग्य शतक
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सेंकडो लाखो, करोडो प्राणीओ एमने एम दुःखी थया. अनंतानंत जीवो हतुं एथी विशेष दुःख पाम्यां, नरकने तिर्यचंना खाडामां गबडी गया. हाथमां आवेल नरजन्मसुखदायी अवतार-कल्पवृक्ष जेवो भव - हारी गया, गुमावी बेठा, हाथ घसता चाल्या गया. माटे हे जीव ! ए भ्रमने छोडी देने साचा सुखने देनार धर्मने आराध. (७२)
(७३) संसारना संबन्धोने तात्विक द्रष्टिए विचारो, तमने जरूर ए खारा लागशे ने एथी वैराग्य थशे.
माता मरी स्त्री थाय छे ने स्त्री मरी माता बने, थाये पिता ते पुत्रने जे पुत्र तेज पिता पणे, एक जन्ममां पण जीव आ बहु रंगथी रंगाय छे, कुबेरसेन परे अरे ? पीडाय छे पीडाय छे.
विवेचन - हे जीव ! तने पूर्वजन्मनुं ज्ञान नथी, तारी बधी अज्ञान चेष्टा छे, नहिं तो तने स्त्रीनी साथे भोग भोगववां केम गमे ! जे स्त्रीने तुं आलिंगन करवा इच्छे छे ते एक वखत तारी माता हती. एक जन्ममां तुं एनी गोदमा रह्यो हतो. एना खोळामां रम्यो हतो, एनुं दूध पीने मोटो थयो हतो. आजे बधुं तुं भूली गयो छे तने कई पण याद नथी. आ बधा आत्मा साथे तारे बधा संबंधो बंधाया छे, एक जन्मनी माता, ए बीजा जन्ममां स्त्री थाय