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श्री वैराग्य शतक युगलिक धर्म नाश पामी रह्यो हतो, अने मानव समूहने नवी व्यवस्थानी जरूर हती, ते समये श्री आदीश्वर प्रभु थया. तेमणे मनुष्योने प्रथम व्यवहारिक व्यवस्था बताव्या बाद आत्मिक विकासने माटे धर्मव्यवस्था दर्शावी. ते माटे तेमणे प्रथम दीक्षा लई केवळ ज्ञान प्राप्त करी- पोताना ९९ पुत्रोने अने बे पुत्रीने तेमज हजारो मनुष्योने दीक्षित बनावी धर्ममार्ग प्रवर्ताव्यो. आजे जे व्यवहारिक अने धार्मिक प्रवृत्तिओ चाले छे, तेना मूळ प्रणेता श्री ऋषभदेव भगवंत छे. वेदोमां अने भागवत वगेरे ग्रन्थोमां पण तेमनुं वर्णन आवे छे. ते नाभिराजा अने मरू देवा माताना नन्दनने नमन करी
(२) शान्ति जिनेश्वर - हस्तिनापुर नगरमां विश्वसेन राजा अने अचिरा राणीने त्यां तेमनो जन्म थयो. तेओ गर्भमां हता त्यारे तेमनी माताना स्नानजलथी मरकीनो उपद्रव नाश पाम्यो अने शान्ति थई. तेथी तेमनुं श्री शान्तिनाथ ऐवं सार्थक नाम थयु. तेओए छ खंडनु राज्यचक्रवर्तिपणुं भोगव्युं, अने तेनो त्याग करी त्यागी बन्या. ते १६मा तीर्थंकरपणे विचरी सिद्धि वर्या, लघुशान्ति, अजितशान्ति, मोटीशान्ति, संतिकरं वगेरे स्तोत्रोथी तेमनो प्रभाव अपूर्व प्रसिद्ध छे, तेमने नमस्कार करी
(३) नेमिप्रभु-प्रभुश्री वीरना जन्मपूर्वे ८४,००० वर्ष पहेलां तेओ शौरीपुरीमां समुद्रविजयराजा अने शिवादेवी