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श्री वैराग्य शतक कपट पुतळीनां मन केरो भाव न कोई थकीय जणाय. सूर्यकान्ता सुकुमालिका जेवा द्रष्टान्तो बहु संभळाय सर्व दुःख, साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने व्हाय.
विवेचन :- स्त्री एटले, जुठानुं घर-मायानुं मंदिर ए कांइक कहे ने कांईक करे, कांइक बोलेने कांइक चाले, एने कोई जाणी न शके, एना मननो पार कोइ न पामे. एना देखाडवाना दांत जुदा ने चाववाना दांत जुदा. गमे तेटलो प्रेम करो पण दगो देता ते वार नहिं लगाडे. सूर्यकान्ता सुकुमालिका वगेरे स्त्रीचरित्रना हजारो दृष्टांतो छे.
सूर्यकान्तानुं दृष्टान्त :- श्वेताम्बी नगरीमां नास्तिक प्रदेशी नामे राजा हतो. तेने सूर्यकान्ता नामे राणी हती ने सूर्यकान्त नामे कुंवर हतो. धर्म श्रद्धा नहि होवाथी राजानो . घणो खरो समय राणी साथे भोगविलासमां ज वीततो, केशी-गणधरना उपदेशथी राजा धर्म पाम्यो, पोतानी पहेली जींदगी माटे पश्चात्ताप थयो, एटले हवेना जीवननी सार्थकता करवा माटे तेणे पोताना सातहजार गामनी आ प्रमाणे व्यवस्था करी. तेनी उपजनो एक भाग सैन्य वगेरेना पोषणमां, बीजो-अंत:पुरमां, त्रीजो भाग-भंडारमा अने चोथो भाग-दानशाळा आदि धर्म-कार्यमां वापरवो, एवी प्रतिज्ञा लीधी ने श्रावकना व्रतो उच्चर्या, केवळ भोगविलासमां