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श्री वैराग्य शतक आहार आदिमां जतो समय वगेरे बाद करता धर्म साधन माटे अतिशय अल्प वखत बचे छे. तेटलो काळ पण जो बराबर हृदयपूर्वक धर्म आराधन कराय तो अपूर्व सुख मळे छे. जे धर्म मनुष्यो करी शके छे. ते देवो पण करी शकता नथी, माटे ज समकित द्रष्टि देवो मनुष्य भवनी चाहना राखे छे, धर्म साधना कर्या सिवाय मनुष्य भव हारी गयां पछी मळवो अत्यंत दुर्लभ-मुश्केल छे. ते दुर्लभता समजवा माटे शास्त्रमा दश-द्रष्टांत आवे छे. ते आ प्रमाणे - (२) ।
(३) द्रष्टांत पहेलुं 'चूला'नुं भरतक्षेत्रमा घरघर भोजन ब्राह्मणने आपे चक्रीश, चोसठ सहस अन्तेउरी जस नरपति सेवे सहस बत्रीश. दैवयोगथी एक घरे ते बीजी वखते जमवा जाय, पण सुकृतविणगतनरभव ते पाछो चेतन नहीं ज पमाय.
विवेचन....एक चक्रवर्ती एक ब्राह्मण उपर प्रसन्न थयो, ने तेने वरदान मागवा कडं, पोतानी स्त्रीनी सलाह लईने ब्राह्मणे चक्रवर्तीना राज्यमां दरेक घरे भोजन अने दक्षिणा मळे एवी मागणी करी. चक्रवर्तीए ब्राह्मणनी तुच्छ मांगणीनी मश्करी करीने स्वीकारी. पहेले दिवसे चक्रवर्तीने त्यां भोजन थयुं, पछी क्रमसर तेनी चोसठ हजार अंतःपुरनी राणीओने त्यां, तेनी सेवामां रहेता बत्रीश हजार मुकुटबंधि राजाओने त्यां भोजन थयुं. त्यारबाद ए नगरमां-मंत्रीओ