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श्री वैराग्य शतक दिवान शेठ-सामंत वगेरेने त्यां भोजन करतां करतां ज ते ब्राह्मण, आयुष्य पूरू थई. जाय, एटलं मोटुं ते नगर हतुं. तो पछी बत्रीश हजार नगरो अने छन्नु करोड गामोमां घरे घरे भोजनना वारा पूरा करता पुछवू ज शुं. एक वखत आ बधा घर पूरा थया पछी फरीथी बीजो वारो शरू थाय त्यारे ज पहेले दिवसे चक्रवर्ती- घर आवे. एकवार चाखेल चक्रवर्तीनुं भोजन ब्राह्मणनी दाढमां एवं तो रही गयेखें के ते रोज विचार करे के क्यारे फरी बीजो वारो शरू थाय ने चक्रवर्तीनुं भोजन करू , ब्राह्मणने फरी चक्रवर्तीना घरभोजन करवानो वारो आवशे ! ना ए बने ज नही कदाच मानी ल्यो के ए बने पण पुण्य-करणी कर्या सिवाय जो मानव जन्म हारी गया तो ते फरी नही ज मळे (३)
। (४) दृष्टांत बीजुं 'धान्य'र्नु भरतक्षेत्रनां सर्व धान्यनी देवे कीधी ढगली एक, तेमां पाली सरसव नांखी लाव्यो डोसी वृद्ध ज छेक. ते वृद्धाथी कदाच सरसव सर्व धान्यथी भिन्न कराय. पण सुकृतविणगतनरभव ते पाछो चेतन नहिं ज पमाय
विवेचन-धान्योनी मुख्यतया २४ जातिओ छे. एक गामनो पण पाक सारो उतरे तो लाखो मण धान्य थाय छे. तो छखण्ड भरत के जेमा ३२ हजार देशो छे, अने ९६ करोड गाम छे, तेना सर्व धान्यो केटला थाय ! कोई