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श्री वैराग्य शतक थतो. नमिराजा भावनाओ चड्या के कोलाहल-अवाजखळभळाट ए एक बीजाना सम्बन्धेज छे, अन्यना योगथी ज आत्मा आटलो दुःखी छे, मझा एकलामां छे. शांति एकलामां छे. आराम एकलामां छे. हुं एक छं. मारो गुण एक छे. हुं तेने संभाळु, तेने खीलवू, एम विचारी नमिराजाए १००८ राणी राज्यपाट खटपट ने सम्बन्ध मात्रनो त्याग करी प्रत्येक बुद्ध थई, साधुपणुं ग्रहण कर्यु ने इन्द्रे परीक्षा करी तो पण पोतामां द्रढ रही छेवटे पोतापणुं पूर्णपणे प्राप्त कर्यु. एज प्रमाणे एकत्व भवना भावी कल्याण साधो ने परमज्योतिमां एकमेक बनी जाव. एज (३९)
(४०) पांचमी अन्यत्व भावनाजेम नलिनीमां जल नित्येभिन्नरहे छे आपस्वभाव, तेम शरीरे चेतन रहे छे अन्यपणुं ए रीते भाव. भेद ज्ञान निश्चळ झळहळतुं सर्व भावथी ज्यारे थाय. तजी ममता ग्रही समता चेतनतत्क्षणमुक्तिपुरीमां जाय.
विवेचन-हे आत्मन् ! आ सर्व पदार्थोथी तुं जुदो छे ने ते सर्व ताराथी जुदा छे. तेनी साथे तारे कांई लागतुंवळगतुं नथी. पाणीमां कमळ जेम जुदं रहे छे. तेम तारा शरीरमां पण तुं छे. शरीर ए तुं नथी. तुं जुदो छे. तुं परलोकमां जइश त्यारे शरीर अहिं पडयुं रहेशे, ज्यारे शरीरनी ए दशा छे तो अन्य पदार्थोनुं पूछवू ज शुं ! कोई