Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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FASURRORISPREACHES
और क्रिया उत्पन्न होते हैं इस रूपसे नाम प्रत्यय हीका नाम षडायतन है। विषय इंद्रिय और विज्ञान 9 इन तीनों धर्मोंका जो.आपसमें मिल जाना है वह स्पर्श है एवं छै आयतनोंसे ही छै स्पर्शकायोंकी 26 प्रवृचि होती है इसलिये स्पर्शमें छै आयतन ही कारण हैं । स्पर्शका अनुभव करना वेदना है क्योंकि जिस तरहका स्पर्श होता है उसी तरहकी वेदना होती है इसलिये वेदनामें कारण स्पर्श है। वेदनाको जो जाने वह तृष्णा है क्योंकि विशेष विशेष वेदनाओंको जो भोगे बढावै जाने एवं उनकी लालसा रक्खे वह तृष्णा है और वह वेदनासे होती है इसलिये उसकी उत्पत्ति में कारण वेदना है। अधिक तृष्णा ई 2 का रखना उपादान है क्योंकि अधिक तृष्णा रखनेस ही मेरी स्त्री मुझार पूर्ण प्रेम करें इस लालसासे ,
किसी प्रकारकी विरक्ति न रख, उससे बार बार प्रार्थनाका प्रयत्न किया जाता है इसलिये उपादानमें ३. कारण तृष्णा है । उपादानसे फिरसे संसारको उत्पन्न करनेवाले कर्म 'जिसका दूसरा नाम भव भी है' 5 उत्पन्न होता है क्योंकि मेरी स्त्री मुझपर पूर्णरूपसे अनुराग कर इत्यादि मन वचन और कायसे प्रार्थना हूँ करनेसे बार बार संसारमें उत्पन्न करनेवाले कर्मकी उत्तचि होती है। कमसे जो स्कंध उत्पन्न होता है हूँ वह जातिस्कंध है । जातिस्कंधका जो परिपाक है वह जरा-बुढापा है यहांपर परिपाक शब्दका अर्थ हूँ
जातिसे रचे हुए स्कंधोंका जीर्ण होना है। तथा जातिस्कंधके परिपाकसे जब विनाश हो जाता है वह है र मरण कहा जाता है इस रीतिसे बुढापा और मरणर्मे जातिस्कंध कारणपडता है इसप्रकार इस द्वादशांग 3 से जीवन मरणको व्यवस्था है और इस द्वादशांगमें प्रत्येक अंग आपसमें एक दूसरेका कारण है। यहां ॐ पर विद्यासे अविद्याका नाश होता है । अविद्याके नाशसे संस्कारका नाश, संस्कारके नाशसे विज्ञान
का नाश, विज्ञानके नाशसे नामरूपका नाश, नामरूपके नाशसे पडायतनका नाश, षडायतनके नाश
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