Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ प्राचीन जैन इतिहास। ४ जीता। इन दोनोंका परस्पर युद्ध इसलिये हुआ था कि किसी रानाने प्रतिनारायण मधुके लिये इतके हाथोंसे भेंट भेजी थी उस भेंटको इन दोनों भाइयोंने छुड़ा ली और दूतको मार डाला । तब नारद द्वारा समाचार सुन मधु लड़ने आया। और धर्म नारायणसे हार कर युद्ध में प्राण दिये । इसके जीते हुए तीन खंडके नारायणधर्म सम्राट हुए । प्रतिनारायणसे ही इन्होंने चक्र रत्नको प्राप्त किया था। (४) नारायणको चक्ररत्ने आदि सात रत्न और बलदेक स्वयंभूको चार रत्न प्राप्त हुए थे। (५) नारायणधर्मकी सोलह हजार रानिया थीं। (६) नारायणधर्म और प्रतिनारायण मधु ये दोनों सातवें नर्क गये और बलदेव स्वयंभूने पहिले तो भाईके मरणका बहुत शोक विया पीछे भगवान् विमलनाथके सभवशरणमें दिक्षा धारण कर मोक्ष पधारे । पाठ ३. भगवान् अनंतनाथ। ( चौदहवें तीर्थकर ) (१) भगवान् विमलनाथके नव सागर बाद चौदहवें तीर्थकर अनंतनाथका जन्म हुआ । इसके जन्मसे तीन चतुर्थाश पल्य पहिलेसे धर्म मार्ग बंद होगया था । (२) भगवान् अनंतनाथ कार्तिक कृष्ण प्रतिपदाको गर्ममे १, २, ३, का विशेष वर्णन परिशिष्ट 'क' में दिया गया है।

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