Book Title: Padhamvaggo
Author(s): Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir
Publisher: Nemivigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रचिता, नमिविणमीणं आगमणं, पहुपासम्म नमि-विणमीणं रज्जमग्गणं, घरणिदागमणं च, नागराएण नमि-विणमीणं विज्जाहरेस्सरियदाणं, वेयड्ढगिरिवण्णणं । ७७–८५ । विज्जाहराणं मज्जाया, उसहपहुणो पढमा भिक्खा, सिज्जंसकुमारस्स पढमं दाणं, उसहृपहुणो बहलीदेसे गमणं, बाहुबलिणो य वंदणङ्कं आगमणं, सामिणो अदंसणे बाहुबलिणी पच्छायावो, उसहसामिणो केवलणाणुप्पत्ती । ८६-९५ । समोसरणं, इंदकय सहजिणथुई, मरुदेवाए बिलावो, भरहनर्रिदस्स पुरओ सामिणाणुत्तीए चक्करयणुप्पत्तीए य जुगवं निवेअणं, मरुदेवाए सह भरहस्स सामिवंदणटुं आगमणं, मरुदेवीए मोक्खो, भरहन रिंदकयजिणथुई, उसहजिणस्स देखणा - संसारसरूवं, सम्मदंसणलाहो, सम्मदंसणलक्खणाई, उसहसेणाईणं दिक्खा, चउब्विहसंघस्स गणहराणं च ठवणा, पहुणो जक्खजक्खिणीओ, विहारो, अइसया य । तइयो उद्देसो समत्तो । ९५ - ११० । उत्थो उदेसो चक्कपूणं, भरहस्स दिसिजयाय पयाणं, चक्कीणं रयणाई, दिसिजत्ताए मागह- वर दामतित्थाहिगारो कयमालदेवाहिगारो य, सिंधुनईए परतडत्थिअमिलिच्छाणं विजओ, तमिस्सागुहाए दुवारुग्घाडणं, मणिरयणका गिणीरयणाणं वण्णणं, उम्मग्ग-निमग्गनईओ, गुहाओ बाहिरं निग्गमणं, उत्तरभरहम्मि चिलायाणं विजओ, हिमवंत गिरिकुमार देवविजओ, उसह कूडम्मि नाम - लिहणं, नमि - विणमिविज्जाहराणं विजओ, इत्थीरयणं, गंगादेवी - नट्टमालदेवविजओ, नवनिहिणो । १११--१३६ । अउज्झानयरीए पवे समहूसवो, भरहस्स महारज्जाभिसेओ, चक्कवट्टिस्स सामिद्धीओ, सुंदरि दहूणं भरहस्स चिंता सुन्दरीए य दिक्खा, भरहेसरकया धम्मचक्कवट्टिण थुई । १३६-१४६ । भरहस्स अट्ठाणउइभाऊणं पहुणो उवएसो, एत्थ इंगालगारस्स दिद्वैतो तेसि च दिक्खा । उत्थो उद्देसो समत्तो । । १४६ - १४७ । पंचमो उद्देसो भरस्स बाहुबलिणो अग्गओ दूअपेसणं, तक्खसिलापुरीए पवेसो, बाहुबलिणा सह संभासणं, सुवेगदूअस्स सहाए निग्गमणं, विणीआनयरीए आगमणं, भरहनरिंदस्स मंतीहिं सद्धि विया - रणा, भरहनर्रिदस्स संगामकरणटुं पयाणं बाहुबलिणो वि पयाणं, भरहबाहुबलीणं सइण्णववस्था, उभहं सेण्णाणं संगाम सज्जीभवणं, संगामपारंभे जिदिपूणं । १४८ - १६८ । जुद्धनिवारणाय देवाणं आगमणं, भरहस्स नियसेण्णाणं पुरओ बलपयंसणं, भरह - बाहुबीणं दिट्ठिपमुहजुद्धं, भरहस्स चक्कमोयणं, बाहुबलिस्स दिक्खा, झाणमग्गया केवलनाणं च । पंचमो उद्देसो समत्तो । १६८ - १८४ । For Private And Personal

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