Book Title: Jayanand Kevali Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 138
________________ गले लगाकर रोने लगी। "हे पुत्री ! स्नेहोल्लास से किंचित् जाना था । पर रूपांतर से नहीं जान सकी। आज हमारा जन्म सफल हो गया। हमारे सभी मनोरथ पूर्ण हो गये। तेरे मिलन सुख से विपत्तियाँ दूर भाग गयी। कुमार ने भी सासू को प्रणाम किया। उसने आशीष दी। चारों और हर्षका वातावरण फैल गया । फिर कमला, विजया को लेकर अपने महल में गयी। स्वजन सब विजया को पाकर प्रफुल्लित हुए । कमलप्रभ राजा ने अनेक प्रकार से महोत्सव मनाया । कुमार ने पद्मरथ राजा को अनेक प्रकार से धर्मोपदेश दिया और कहा । "तुमको साक्षात् पुण्य का फल तुमारी पुत्री ने बताया । क्योंकि आपत्ति में फैंकी हुई वह संपत्ति के शिखर पर चढ़ गयी है।" दृष्ट धर्म फल में कौन आदर नहीं करेगा? पद्मरथ राजा ने कहा “कुमार मैं प्रबुद्ध हो गया हूँ। गुरु भगवंत के पास विधिवत् धर्म ग्रहण करूँगा । इस में संशय मत रखना ।' कुमार ने कहा स्वल्प कथन से प्रतिबुद्ध होनेवाले आपको धन्य हैं। दुर्बुद्धि तो अत्यंत उद्यम से भी प्रतिबुद्ध नहीं होता।" कमलप्रभ राजा ने पद्मरथ राजा को वस्त्रालंकार आदि से सन्मानित किया । शुभमुहूर्त में कमलसुंदरी की शादी जयानंदकुमार से कर दी । अनिच्छा होते हुए भी एक देश जबरदस्ती दिया । वह देश उसने कमलसुंदरी को दे दिया । वह पूर्व की रीति अनुसार दानादि देता हुआ समय पसार करता था । पद्मरथ ने अपने जामाता एवं पुत्री को वस्त्रालंकार एवं देश दिया । वह उसने विजयासुंदरी के आधीन कर दिया । थोड़े दिनों के बाद पद्मरथ राजा ने अपने नगर में जाने हेतु आज्ञा मांगी । तब कमलप्रभ राजा एवं कुमार के द्वारा पुनः सत्कार कराया हुआ वह राजा अपनी पत्नी कमला, मंत्री आदि परिवार के साथ अपने नगर को गया । वहाँ सद्गुरु से धर्म समझकर शुद्धभाव से श्राद्धधर्म को स्वीकारकर, उसका

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