Book Title: Jayanand Kevali Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 163
________________ "पिता की उपस्थिति में आप कौन-कौन से व्यापार में विशेष रूचिवाले थे । उन्होंने अपनी-अपनी रूचि कही, तब कोशल ने कहा "मिट्टी निकली, इसका अर्थ खेत का मालिक वह, अस्थि निकली सो गाय, बैल आदि का मालिक वह, कागज निकले सो साहुकारों में और व्यापार में धन है, उसका मालिक वह, स्वर्ण निकला वह रोकड़ रकम का मालिक । देख लेना, हिसाब लगा लेना सभी के भाग्य में समान धन होगा । तुम्हारे पिता ने तुम्हारी रूचि, शक्ति के अनुसार विभाजन किया है।'' चारों ने अंगुलियों पर हिसाब लगाकर कहा "हमारे पिता ने जो किया वह सही है।" चारों भाई कोशल की बुद्धि की प्रशंसा करते हुए घर जाकर प्रीतिपूर्वक रहने लगे । राजा ने कोशल को मुख्य मंत्री की मुद्रा के लिए आग्रह किया । परंतु उसने कहा "मैंने श्रावक व्रत स्वीकार करते समय नियोगादिका प्रत्याख्यान लिया हुआ है।" तब राजा ने उसे राजसभा में प्रतिदिन आनेका और मंत्रीयों से उसकी सलाह लेने का आग्रह किया । इससे अन्य मंत्री उस पर ईर्ष्या करने लगे । उसमें सागर तो अधिक ईर्ष्या करने लगा । एकबार सागर ने राजा से कहा कि "देवगिरि का रिपुमर्दन आप की अवगणना करता है, उधर कौशल को भेजा जाय । संधि कर लेगा । इससे इसकी बुद्धि की परीक्षा होगी । तब राजा ने उस मंत्री को प्राभृत के लिए कहा । उसने प्राभृत तैयार करते समय एक पेटी में मिट्टी भरा कलश रखकर उसको ताला देकर दिया । सभी प्राभृत ले जाकर राजा के सामने धरा । खोलने पर मिट्टी को देखकर रिपुमर्दन क्रोधित हुआ । कोशल ने कहा "राजन्! आप इसे सामान्य मिट्टी न समझें । मेरे राज्य में मरकी का उपद्रव हुआ, तब मेरे राजा ने 'अंधलरेली' नामक देवी की आराधना की तब उसने चतुष्पथ से धूलि लेकर अभिमंत्रितकर के दी, और कहा इसका तिलक करने

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