Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

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Page 202
________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ____१९५ अथ श्री षट् द्रव्यना बोल, परिणाम जीवमुत्तं, सपएसाएगखेत किरियाय; निचंकारणकत्ता, सध्वगयमियरेहिंअप्पवेसा ॥१॥ ए गाथा हवे एहनो अर्थ कहे छे. शिष्य आत्मार्थी पंचांग नमावी पुछे छे जे हे स्वामिन् ! षट् द्रव्यमा परि णामि द्रव्य केटला अने अपरिणामि द्रव्य केटला? गुरु कहे छे हे आयुष्मन् शिष्य ! निश्चय नये षद द्रव्य पोतपोताने स्वभावे स्वरुपे पोत पोताना गुण पर्यायनि परिणति रुपे छ ए स्वभाव परिणामि अने व्यवहार नये जीव ने पुद्गल ए २ विभाव परिणामि शेष ४ द्रव्य अपरिणामि. १.हवे छ द्रव्यमा एक जीवास्तिकाय, जीवद्रव्य, चैतन्य.शेष ५ जड, अजीव द्रव्य छे. २. हवे छ द्रव्यमा एक पुदल द्रव्य मुर्तिमान छे. शेष ५ अमूर्ति छे. ३. छ द्रव्यमां एक काळद्रव्य अप्रदेशी, समयद्रव्य छे. शेष ५ समदेशी छे. धर्म, अधर्म असंख्यात प्रदेशी. आकाश लोकालोक प्रमाणे छे माटे अनंत प्रदेशी. पुद्गल द्रव्य एक परमाणु यावत् अनंता खंधो छे माटे अनंत प्रदेशी छे.अने जीवात्मा असंख्यात प्रदेशी छे. ४. छद्रव्य निश्चयनये एक, छये द्रव्य अनेक, धर्म० अधर्म० द्रव्यथी एक, गुण पर्याय प्रदेशथी अनेक, गुण अनंता. पर्याय अनंता, प्रदेश असंख्याता, आकाशना प्रदेश पण अनंता. काळ द्रव्य वर्तना लक्षणे एक.गुण पर्याय समयथी अनेक. गुण अनंता. पर्याय अनंता. समय अनंता ते केम ? एक आवलिकाना चोथा असंख्यात प्रमाणे समय थाय. एम यावत् दश क्रोडाकोडी सागरोपमे एक उत्सपिणी. दश क्रोडाकोडि सागरो

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