Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

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Page 209
________________ २०२ पेंद्र द्रव्यना बात. ज्ञान सम्यकत्वे करी पुद्गलीक वस्तु जीव वस्तुनो भेद करी अंतरंग परिणामथी उदासी परिणामे आत्मीक वस्तु न्यारी ओलखीने तेनुं ध्यान करण रुचिवाळाने अंतरात्मा पद प्रकटे ते चोथे गुणठाथी मांडीने १२मा गुणठाणा सुधी जाणवो. हवे त्रीजा परमात्मानुं लक्षण कहे छे. (दुहो) प्यारो आप स्वरुपमे, न्यारो पुद्गल खेल, सो परमात्मा जाणीए, नहि जस भव को मेल. आत्मा स्वरुपने विषे मग्न रहे. (दुहो) समता रमता उर्द्धता, ज्ञायकता सुख भास, वेदकता चैतन्यता, ए सब जीव विलास. २. एटला बोल प्रगट थाळे शुद्ध प्रणतिये अने पुद्गलना खेळथी न्यारो होय. (दुहे ) तनता मनता वचनता, जडता जड सह मेळ, लघुता गुरुता गमनता, ए अजीव के खेल, ३. ए सर्वपर वस्तु मात्र कर्म चैतन्यताथी न्यारो रहे, जेहने पुनरपि भवादि सर्व मेल रहित ते परमात्मा तेरमे, चादमे गुणठाणे तथा सिद्धने परमात्मा कहिये. मां द्रव्यात्मा असंख्यात प्रदेशी बहिरात्मानी प्रणतिये परिणम्यो ते वहिरात्मा, एमज अंतरात्मा परमात्मा पण कहिये. एमज कपायात्मा ते निश्चय व्यवहार सर्व रीते बहिरात्माज कहिये. योगात्मा निश्चय नये तो बहिरात्मा, व्यवहारनये शुद्ध योग ते अंतरात्मा, अशुध्ध योग से बहिरात्मा, उपयोग आत्मा तेमां ज्ञानात्माना उपयोगमा ४ ज्ञान अंतरात्मा केवलज्ञान परमात्मा, दर्शन आत्मानां ३ दर्शननो उपयोग शुद्ध प्रणविये अंतरात्मा, अशुद्ध प्रणतिये बहिरात्मा, केवळ दर्शनना उपयोग ते परमात्मा, अज्ञाननो उपयोग ते बहिरात्मा, ज्ञानात्मामा ४ ज्ञान अंतरात्मा, केवळज्ञान परमात्मा, दर्शन आत्मामां ३ दर्शन शुद्ध प्रणतिये अंतरात्मा, अशुद्ध प्रणतिये बहिसत्मा, केवळदर्शन ते परमात्मा, चारित्र आत्मामां, ५ चारित्र क्षयोपशमनी

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