Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

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Page 227
________________ २२० प्रमाण बोपनो योकडो. तेवारे एक द्रोण प्रमाणे जल कुंडि माहियी बाहिर निकले तथा एक द्रोण प्रमाणे जले करि कुडि उणि होय ते कुंडिमां ते पुरुष बेशे परिपूर्ण जले भराय तेने मानोपेत पुरुष कहिए, द्रोण ते केवड़ो होय ते कहे छे, बे असलीये १. पसली थाय, वे पसलीये १ सइ थाय, चार सइए १ कुडव थाय, चार कुड़वे १ पाथा थार, चार पाथे १ आढो थाय. चार आढे १ द्रोण थाय, ए द्रोग मान का, ए.रीते मानोपेत पुरुष कहिये, उन्मानयुक्त्त पुरुष केहने कहिये, जे पुरुष तोळयो थको अई भार धाप तेने उन्मानयुका पुरुष कहिये, अर्द्ध भार- मान कहे छे एक हजार ने पचाश ..पले अर्द्ध भार थाय, ए अद्ध भारतुं मान कयु, प्रमाण मान उत्मान युक्त लक्षण साथियादिक व्यंजन मस तिलादिक गुग, क्षमा दाना. दिक सहीत जे पुरुष होय ते उत्तम पुरुष जाणवो, उत्तम पुरुष १०८ आत्म अंगुलनो उंचों होप, मध्यम पुरुष १०४ आत्म अंशुलनो उंचो होय, एहवा ६ आत्म आपुले १ पगना मध्य भागनुं पहोळपणुं थाय, बे पगे १ त थाय, बे वते १ हाथ थाय, वे हाथे १ कुक्षि थाय, बे कुक्षिए १ धनुष थाय, बे हजार धनुषे १ गाउथाय, चार गाउ ए १ जोजन थाय, जे काळे मनुष्यनु आत्म अंगुल होय ते आत्म अंगुले ते वखतना नगर, गाम, वन, कुवा, तळार, वार,गढ, पोळ, कोठा,मान,रथ,गाहादिक ७३ बोलना नाम कह्यांछे ते मपाय.उत्सेघ.गुलनु मान कहे छे, अनंता सुक्ष्म परमाणुवा भेला करिये त्यारे १ व्यवहारि प्रमाणु थाय, तथा जालोने विषे मूर्यना किरण तेमां रज उडतो देवाय ते रजनो अनंतमो भाग तेने व्यवहारि परमाणु कहिये. अन्यमतिओ रजना तेत्रिशमां भागने परमाणु कहे छे. पण व्यवहारि परमाणु ते कहेवाय के जे शस्त्रादी कोइ प्रकारे छेदाय

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