Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १९९ माणु मळे त्यारे उदारिकने ग्रहण योग्य वर्गणा थाय. एम अनंत- .. गुणी अधिक वर्गणा मळे त्यारे वैक्रेयने ग्रहण करवाने योग्य वर्गणा थाय. एम आहारक वर्गणा, तेजस वर्गणा, भाषा वर्गणा, श्वासोश्वास वर्गणा, मनो वर्गणा, अने कार्मण वर्गणा ए ८ वर्गणा मांहि पहेली बिजी वर्गणा अनंतगुणी, बीजीथी त्रीजी अनंतगुणी, एम आठे वर्गगा जाणवी. तेमां उदारिक, वैक्रेय, आहारक, तैजस, ए ४ मां ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ८ स्पर्श, अने भाषा. उश्वास, मनोअने कार्मण ए ४ वर्गणामां ५ वर्ग, २ गंध, ५ रस, ४ स्पर्श ए ४ वर्गणा अगुरुलघुनी जाणवी. हवे पट द्रव्यमां आठ आठ पक्ष कह्याछे. नि १, अनित्य २, एक ३, अनेक ४, सत् ५, असत् ६, वक्तव्य ७, अवक्तव्य८, हवे तेमां नित्य, अनित्य, एक, अनेक. ए४ पक्ष तो पूर्वे काा. तेज सत् ते छ द्रव्य पोत पोताना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव रूपे छता छे. तेमां धर्मास्तिकायनो स्वद्रव्य चलण सहाय गुण. अधमस्तिकायनो स्वद्रव्य स्थिर सहाय गुण. आकाश० स्वद्रव्य अवकाश दान गुण. काळ० स्वद्रव्य वर्तना, लक्षण गुण. पुद्धल० स्वद्रव्य पूरण गलन गुण. जीवास्तिकाय स्वद्रव्य उपयोग लक्षण गुण. एम छ द्रव्यनुं स्वक्षेत्र कहे छे. धर्म० अधर्म० स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेशी. आकाश० स्वक्षेत्र अनंत प्रदेशी. काळनो स्वक्षेत्र एक समय पुद्गलनो स्वक्षेत्र एक परमाणु एहदा अनंता. जीवनो स्वक्षेत्र असंख्य मदेशी. एम छ द्रव्यनो काळ पोतपोताना अगुरु लघुनी समय समयनी प्रणति करे छे ते छ द्रव्यनो स्वकाळ. छ द्रव्यनो स्वभाव ते छ र द्रव्यमां पोतपोताना ४ बोल पोतपोतामां छे, अने बिजा द्रव्यना ४ बोल तेमां नथी. जेम धर्मास्तिकायमां पोताना द्रव्य क्षेत्र काळ भाव ए चार बोल छे. बीजा ५ द्रव्यना

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242