Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s):
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala
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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह
२१३
१०. बुद्धिवंत होय ११. दातार गुण होय १२. जेनी पासे धर्म सांभळे तेना गुणनो फेलाव करनार होय १३. कोइनी निंदा न करे तेमज तेमनो वादविवाद न करे १४.
पंदरमे बोले वनीत शिष्यना पंदर गुण कहे छे - गुरुथी fter आसने बेसवा वाळोहोय १. चपळपणा रहित होप २. माया रहित होय ३. कतोहळ रहित होय ४. करकस वचन. रहित होय ५० लांबो वखत पहोंचे तेवो क्रोध न करनार होय ६. मित्र साथै मित्रता राखे ७. सुत्र भणी मद न करे ८. आचार्यादिकनी निंदा न करे ९. शिखामण देनार उपर क्रोध न करे १०. पुंठ पाछळ वालेसरीना - गुण बोले ११. कलेश ममता रहित होय १२. तत्वनो जाण होय १३. विनयवंत होय १४. लज्जावंत इंद्रिनो दमनार होय १५.
सोळमे बोले सोळ प्रकारना वचन जाणवा ते कहे छे - एक वचन घट, पट, वृक्ष १. द्विवचन घटौ, पटो, वृक्षौ २. बहुवचन घटाः पटः वृक्षाः ३. स्त्री लिंगे वचन कुमारी, नगरी, नदी ४. पुरुष लिंगे वचन देव, नर, अरिहंत, साधु ५. नपुंसक लिंगे वचन. कपट, कमळ, नेत्र ६. अतीत काळ वचन ( गयो काळ ) करेलु, थपलं ७. अनागत काळ वचन ( आवतो काळ ) करशे, थशे, भांगशे ८. वर्तमानकाळ वचन करे छे, थाय छे, भणे छे ९. परोक्ष वचन
कार्य तेणे कर्यु १०. प्रत्यक्ष वचन एमज छे ११. उपनित वचन ए पुरुष रूपवंत के १२. अपनीत वचन जेम ए पुरुष कुरुपर्वत छे १३. उपनीत अपनात वचन जेम ए रूपवंत पण कुशीलिओ छे १४. अपनीत उपनीत वचन जेम ए पुरुष कुशीलि ओपण रूपवंत छे १५० "सायिक वचन मन बोले (तुटेलुं वचन) रु वाणी आनी पेरे रुपा १६० सतरमे बोले सतर प्रकारनो संयम कहे छे-पृथ्वीकायनी दया

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