Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s):
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala
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२२४. प्रमाण बोधनो थोकडो. भागे अने नाहना सुक्ष्म वनस्पति जीपना शरीरनी अवघेमाथी असं. ख्यातगुणा महोटा अने जेवई एक बादर पृथ्वोकायना जीवनुं शरिर तेवडा वाळाना खंड न्हाना थार, ते वाळापना खंड अग्निये वळे नहि, वायरे उडे नहि, ते वाळायने खंडे करी पालो ठांसी भरीये, ते पाला माहेथी समये समये अकेको बालापनो खंड काढीये एम काढतां जेटले काळे ते पालो खाली थाय तेटला काळने सुक्ष्म उद्वार पन्योपप कहीये.ए पल्योपम असंख्याता समयनो थाय एहवा दशकोडा क्रोडी पल्योपमे एक सुक्षम उद्धार सागरोपम थाय. ए सागरोपमे द्वीप समुद्रनुं मान वर्णव्युं छे. अहो उध्धार सागरोपमना जेटला समय थाय तेटला द्वीप समुद्र त्रिछालोकमां छे. जंबुद्वीप एकलाख जोजननो लांबो ने पहोलो एम ठाम बमणो, लक्ण समुद्र बे लाख जोजननो धातकिखंड चार लाख जोजननो एम ठाम बमणा असंख्याता द्वीप समुद्र जाणवा ए सुक्षम उद्धार पल्योपमः हवे अध्या पन्योपमनु स्वरुप कहे छे. तेना बे भेद सुक्षम अने बादर तेमां बादर अद्धा पल्मोपम केहने कहिए? एक जोजननो लांबो पहोलो ने उंडोचारे हांसे सरखो पूर्ववत् पालो कल्पिर देवकुरु उतरकुरु जुगलोया मनुष्धना वाळाकरी पालो ठांसी भरीये, पछी सो सो वर्षे एकेको बालान काढिये,एम काढतां जेटले काळे ते पालो खाली थाय,तेटला काळने बादर अद्धा पल्योपम कहिये, ए पत्य संख्याता क्रोडि वर्षे थाय, एहवा दश क्रोडाक्रोडि बादर अद्धा पल्योपमे १ बादर अद्धा सागरोपम थाय. केवळ परुपणा मात्र छे. हवे सुक्षम अद्धा पल्योपमनु स्वरुप कहेछे एका जोजननो लांबो पहोलो ने उंडो पूर्ववत् कलपिये तेहमा पूर्ववत् देवकुरु, उत्तरकुरु, क्षेत्रना जुगलोयाना वालाग्रने असख्याता खंड करी भरीये, पालामांथी सो सो वर्षे एकेक खंड

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