Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s):
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala
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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
२३३
छट्ठी नरकना तळा सुधी, चार अनुत्तर विमानना सातमी नरकना तळा सुधी, अने सर्वार्थसिद्धना देवता सातमी नरकना तळा सुधी देखे. तिर्येच ज० आंगुलनो असंख्यातमो भाग, उ० संख्याता द्वीप समुद्र देखे. मनुष्य ज० आंगुलनो असंख्यातमो भाग, उ० marath अने अलोकमां लाक जेवडा असंख्याता खांडवा देखे.
३. श्रीजो संठाणद्वार नारकी त्रापाने आकारे देखे, भवनपतीपालाने आकारे देखे, वाणव्यंतर झालरने आकारे देखे. ज्योतिषी पहाडने आकारे देखे, बार देवलोकना देवता मृदंगने आकारे देखे. नवग्रैवेयकना देवता फूलनी चंगेरीना आकारे देखे, अनुत्तर विमानना देवता कुंवारी कन्याना कंचवाने आकारे देखे .
४. चोथो आभ्यंतर अने बाह्यद्वार:- नारकी, देवता आभ्यंतर देखे, तिर्यच बाह्य देखे, मनुष्य आभ्यंतर अने बाह्य देखे, कारण के तीर्थकर दवने अवधिज्ञान साथेज होय छे.
५. पांचमो देश अने सर्वथकीद्वार : - नारकी, तिर्यच अने देवता देश थकी अने सर्व थकी देखे.
६. छट्टो अणुगामी अने अणाणुगामीद्वार:- नारकी, देवताने अणुगामी कहेतां साथे जनाएं अवधिज्ञान होय, अने तिर्यचने अणुगामी अने अणानुगामी बन्ने होय.
७- ८. सातमो हायमान वर्द्धमान अने आठमो अवठीया द्वारनारकी देवताने अवठीया कहेतां होय तेटलं अवधिज्ञान रहे. मनुष्य अने तिर्यचने हायमान वर्द्धमान अने अवठीया ए त्रण प्रकार होय.
९- १०. नवमो पडीवाइ अने दसम अपडीवाइद्वारः - नारकी अने देवताने अपडीवाइ अवधिज्ञान होय, मनुष्य अने तिर्यचने पडीवाइ भने अपडीवाइ बने जाणवा. इति अवधिपद संपूर्ण. इति जैन सिद्धांत प्रकरण संपूर्ण.

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