Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 31
________________ श्री विमलनाथ भगवान की आरती आरति करो रे, तेरहवें जिनवर विमलनाथ की आरति करो रे ॥ टेक ॥ कृतवर्मा पितु राजदुलारे, जयश्यामा के प्यारे। वंपिलपुरि में जन्म लिया है, सुर नर वंदें सारे । आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, निर्मल त्रय ज्ञान सहित स्वामी की आरति करो रे ॥ १ ॥ शुभ ज्येष्ठ वदी दशमी प्रभु की, गर्भागम तिथि मानी जाती। है जन्म और दीक्षाकल्याणक, माघ चतुर्थी सुदि आती।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, मनपर्ययज्ञानी तीर्थंकर की आरति करो रे ॥ २॥ सित माघ छट्ठ को ज्ञान हुआ, धनपति शुभ समवसरण रचता। दिव्यध्वनि प्रभु की खिरी और भव्यों का मनः कुमुद खिलता। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, केवलज्ञानी अर्हत प्रभुवर की आरति करो रे || ३ || आषाढ़ वदी अष्टमि तिथि थी, पंचम गति प्रभुवर ने पाई । शुभ लोक शिखर पर राजे जा, परमातम ज्योती प्रगटाई।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, उन सिद्धिप्रिया के अधिनायक की आरति करो रे ||४|| हे विमल प्रभू! तव चरणों में, बस एक आश यह है मेरी। मम विमल मती हो जावे प्रभु, मिल जाए मुझे भी सिद्धगती आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, "चंदना" स्वात्मसुख पाने हेतू आरति करो रे ||५|| 31

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