Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 121
________________ सर्वतोभद्र मण्डल विधान की आरती आज करें सर्वतोभद्र की, आरति सब नरनार । मणिमय दीपक लेकर आए, जिनवर के दरबार ।। हो प्रभुवर हम सब उतारें तेरी आरती ।। टेक.।। ऊध्र्व, मध्य अरू अधोलोक में, जितने भव्य जिनालय । कृत्रिम और अकृत्रिम जिनगृह, सौख्य सुधारस आलय।। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥ १ ॥ भवनवासि व्यन्तर ज्योतिष, वैमानिक के जिनमंदिर। इक सौ आठ जैन प्रतिमा से, शोभ रहे अतिसुन्दर।। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥२॥ चार शतक अट्ठावन मंदिर, मध्यलोक में गाए। स्वयं सिद्ध जिननिलय अकृत्रिम, ग्रंथों में बतलाए । जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥ ३ ॥ पंच भरत ऐरावत पांचों, में तीर्थंकर जितने । पांचों महाविदेहों के सब, तीर्थंकर को नम लें || जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥४॥ अर्हत, सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु पंचपरमेष्ठी । जिनवाणी, जिनधर्म, जिनालय, चैत्य सर्व सुख जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥५॥ सबका जो कल्याण करे, सर्वतोभद्र कहलाता। श्रेष्ठी ॥ इसकी आरति से जन-जन का, भव आरत छुट जाता। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥६॥ ज्ञानमती माताजी ने यह, महाविधान बनाया। करे 'चन्दनामति' जो इसको, मनवांछित फल पाया। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ||७|| 121

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