Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 108
________________ त्रैलोक्य विधान की आरती तर्ज-क्यों न ध्यान लगाए, वीर से बावरिया.. कर लो सकल नरनार, प्रभूजी की आरतिया। करती है भव से पार, श्री जी की आरतिया।।टेक.।। तीनों लोकों में तू घूमा, लेकिन जीवन प्रभु बिन सूना। जीवन में लाती बहार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥१॥ आठ करोड़ लक्ष छप्पन हैं, सहस सतानवे चार शतक हैं। इक्यासी जिनधाम, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥२॥ सब कृत्रिम अकृत्रिम प्रतिमा, तीन लोक की जानो महिमा। भरे सकल भंडार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥३॥ इस नरतन को तूने पाया, तीन लोक मंडल रचवाया। कर दे सुखी संसार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥४॥ प्रभु की आरति भवदुखहारी, भव्यजनों को आनंदकारी। वरण करे शिवनारि, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥५।। जय जयकार करो अति भारी, गूंज उठे यह नगरी सारी। बोलो सभी नर नार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥६॥ ज्ञानमती माताजी की महिमा, कहे "चन्दना'' तव गुण गरिमा। भरे ज्ञान भण्डार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.।।७।। 108

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