Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 153
________________ लक्ष्मी माता की आरती तर्ज—चाँद मेरे आ जा रे......... आरती लक्ष्मी देवी की-२ धन धान्य की सम्पति देने वाली माँ की करो आरतिया।। आरती.॥टेक.॥ जिनशासन में जिनवर की, ये भक्त कही जाती हैं। जो इनकी भक्ती करते, उनके घर में आती हैं।। आरती लक्ष्मी देवी की ॥१॥ प्रभु समवसरण के आगे, आगे लक्ष्मी चलती हैं। जिससे प्रभु के वैभव में, कुछ कमी न रह सकती है।। आरती लक्ष्मी देवी की ॥२॥ धन वैभव के इच्छुक जन, इनका आराधन करते। आर्थिक संकट नश जाता, इच्छित फल को वे लभते।। आरती लक्ष्मी देवी की ॥३॥ हे लक्ष्मी माता मुझको भक्ती का ऐसा वर दो। लौकिक आध्यात्मिक लक्ष्मी, “चंदनामती” मन भर दो।। आरती लक्ष्मी देवी की ॥४॥ 153

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