Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 132
________________ गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरती (6) आरती गणिनी माता की दीपक जलाकर, थाली सजाकर, सब मिल करो आरतिया .टेक.।। आरती. अज्ञान तिमिर न जावे, निज ज्ञान किरण पा जाऊँ । गणिनी माँ की आरति कर, भव आरत से छुट जाऊँ।। आरती गणिनी माता की .. ...॥१॥ आश्विन शुक्ला पूनो को, इक चाँद धरा पर आया। मैना से ज्ञानमती बन, उसने अमृत बरसाया। आरती गणिनी माता की .......॥२॥ साहित्य सृजन के द्वारा, तुमने इतिहास बनाया। शुभ ज्ञान ज्योति के द्वारा, जग में प्रकाश फैलाया ।। आरती गणिनी माता की. .॥३॥ C ब्राह्मी माँ की प्रतिमूरत, मानो कलियुग में आईं। आर्यिका परम्परा ने, क्वाँरी कन्याएँ पाईं।। आरती गणिनी माता की .......॥४॥ कंचन का दीप जलाकर, वरदान यही मैं चाहूँ । 'चंदनामती' निज आतम, में ज्ञान की ज्योति जलाऊँ।। आरती गणिनी माता की .......॥५॥ 132

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