Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 159
________________ श्री वीरसागर महाराज की आरती ॐ जय जय गुरुदेवा, स्वामी जय जय गुरुदेवा । जिनवर के लघुनंदन-२, वीर सिन्धु देवा।।ॐ जय.।। श्रीचारित्रचक्रवर्ती के, प्रथम शिष्य माने। स्वामी......... पट्टाचार्य प्रथम बन-२, निज पर को जानें ॥ॐ जय ॥१॥ संघ चतुर्विध के अधिनायक, छत्तिस गुणधारी । स्वामी..... गुरूपूर्णिमा के दिन जन्मे-२, गुरुपद के धारी ॥ ॐ जय ॥२॥ आश्विन वदि मावस को, मरण समाधि हुआ स्वामी. जीवन मंदिर पर तब - २, स्वर्णिम कलश चढ़ा || ॐ जय ॥३॥ गुरु आरति से मेरा, आरत दूर भगे। स्वामी तभी “चंदनामती” हृदय में, आतम ज्योति जगे ॥ ॐ जय ॥४॥ 159

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