Book Title: Jain Arti Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 127
________________ ..... गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरती (1) गणिनी माता ज्ञानमती की आरति है सखकारी। इनके दर्शन से नश जाता मोह तिमिर भी भारी।। बोलो जय जय जय, बोलो......|टेक.।। धन्य टिकैतनगर की धरती, जन्म हुआ जहाँ इनका। छोटेलाल पिता माँ मोहिनि, शरदपूर्णिमा दिन था।। अमृत झरता था चंदा से.. अमृत झरता था चंदा से, खिली चाँदनी प्यारी।।इनके......॥१॥ ब्राह्मी चन्दनबाला का, मारग अपनाया माता। साधू पद धारण कर तुमने, तोड़ा जग से नाता।। सारी वसुधा बनी कुटुम्बी.... सारी वसुधा बनी कुटुम्बी, महिमा तेरी निराली।।इनके......॥२॥ ग्रन्थों की रचना में तुमने, नव इतिहास बनाया। ऋषभदेव के समवसरण का, भारत भ्रमण कराया।। ___ हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की.......... हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की, रचना है अति प्यारी।।इनके......॥३॥ तीर्थ अयोध्या, मांगीतुंगी, का विकास करवाया। नई-नई निर्माण योजना, को साकार कराया।। युगप्रवर्तिका, प्रमुख आर्यिका........ युगप्रवर्तिका, प्रमुख आर्यिका, छवि तेरी अति प्यारी।।इनके .....॥४॥ ऐसी माता से धरती का, आंचल होय न सूना। युग-युग तक “चंदना” अमर हो, यह प्राचीन नमूना।। इनमें दिखती सरस्वती की.......... इनमें दिखती सरस्वती की, पावन मूरत प्यारी।।इनके......॥५।। 127

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