Book Title: Dharmkosh Vyavaharkandam Vol 01 Part 03
Author(s): Lakshman Shastri Joshi
Publisher: Prajnapathshala Mandal

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Page 476
________________ ३२ 'व्यवहारकाण्डम् - कात्या. ६७४ " १२२७ "काले प्रतीते *काले विनीत *काले व्यतीते *काशान् कुब्ज काषायवस्त्र *काषायेण तु *काष्ठकाण्डत काष्ठभाण्डत 'काष्ठलोष्टपा काष्ठलोष्टेषु किमु श्रेष्ठः किं किमेतयोर्ब कियती योषा कियत्खिदिन्द्रो किष्कुमात्रमा कीटोपघाती याज्ञ. १०८५ नार. १९३६ व्यासः १५२४ परि. १८३५ मनुः ९३४ देवी. १९४३ नार. १७४९ व्यास: १५२४ मनुः ७४४ को. १६८५ औ. १७९९ याज्ञ. १८१९, १९३३ बृह. ७३४ यमः १३५१ भा. ८१९ कात्या. १७६२ , आश्व. १५८८ मनुः १७०८, की. १६७७ *काष्ठलोष्टेष्ट *काष्ठलोष्टेषु काष्ठलोहम काष्ठवेणुना काष्ठानां चन्द काष्ठेन प्रथ किं कारणं म किं चापद्यनु किं नु मलं कि किं पुनर्यो गु किं भ्रातासद्य कीदृशः कृत कीदृशीं संत्य कीदृश्यां की कीनाशशिल्पि कीनाशो गोत्र कीर्तिते यदि कीर्तिश्च यश कुटुम्ब बिभृ कुटुम्बकामा कुटुम्बभक्त कुटुम्बभर कुटुम्बर्द्धिलो कुटुम्बहेतो कुटुम्बात्तस्य कुटुम्बार्थम *कुटुम्बार्थे चो कुटुम्बार्थेषु ,, १९२४ भार. ६३५ विष्णुः १७९६ भा. ८४० स्मृत्य. १३७३ वेदाः १२६० वारा. १०७७ वेदाः ९७७, १८३६ __, ९८७ कात्या. ९५७ मनुः ७७३ कुर्युर्यथेष्टं नार. १५८३ अनि. १५८९ नार. ७८१ किं शूरपत्नि किं सुबाहो स्वं किञ्चिच्च द्रव्य *किश्चिदूनं प्र वेदाः ११४३ । “कुर्याच्छशुर वसि. ७३२ कुर्यात्पथो व्य वेदाः ९७९ *कुर्यादनुदि कुर्याद्यः प्राणि को. ९२६ *कुर्याद्यत् प्रा विष्णुः १६०९, *कुयाद्वानुदि १७९८ *कुर्याद्विनिर्ण भा. १२८७ कुर्यान्नागरि कुर्यान्निविष __, १२८६ कुर्यान्यूनाधि बृह. ९५१ कुर्यान्माताम मनुः १२४६ कुर्यामहं जि कात्या. ९५८ कुर्युः कर्माणि वेदाः '८४२ कुयुः पृथक् नार. १२२१ कुर्युरघ य को. १४३० बृह. ८०२ कुर्युभयादा नार. ७९९ कुयुर्यथार्ह को. १०३९ *कुर्युयथार्ह नार. ६९६ मनु: १७२३ कुर्युस्ते भ्रात कात्या. ७१२ कुर्युस्ते व्यभि नार. ११९८ कुर्युस्ते व्यव कु! राजान १५८४ कुर्वन्ति क्षेत्रि भा. १०२८ कुर्वन्त्युत्कोच कौ. १६८९ आप. १४०७ कुर्वन्त्यौपधि .भा. १९७१ *कुर्वन्त्यौपयिः को. १०३८ कुर्वन्त्यौपाधि बृह. ६२८ *... वेदाः १५९२ भा. १०२९ कुर्वीत चैषां कात्या. ६३२ याज्ञ. १८७४ .. कुर्वांत जीव को. १७७२ कुर्वांत शास " ८६२ वेदाः १८९४ कुर्वांताराध आप. १६६६ कुलं काण्डमि वेदाः १००९ आप. १८४४ कुलं चाश्रोत्रि वसि. १०२१ कुलजे वृत्त बृह. ९५२ पिता. ६७६ कुलटां काम व्यासः १५२४ *कुलत्रयं पु पिता. ६७६ कुलधर्म तु भार. ९०० कात्या. ७५४; व्यासः ७५६ मनुः १८५५ . भा. ८६० मनुः १०७४ , व्यासः १७६४, १९४२ , १७६४ किञ्चिदेव तु किञ्चिदेव दा *किञ्चिदेव हि *किश्चिन्न्यूनं तु किश्चिन्न्यूनं प्र *कुर्वीत चैव व्यासः कात्या. ७५४, व्यासः ७५६ विष्णुः ६१० *किण्वकर्पास किण्वकार्पास कितवान् कु कुटुम्बार्थे स कुटुम्बिकाध्य कुटुम्बिनौ ध कुत एव प कुतो हि साध्वी कुत्सितात्सीद कुनखी श्याव कुपितं वाऽर्थ • कुप्यं पञ्चगु *कुबन्धेनाय 'कुब्राह्मणादि । कुमारकान् कुमारदेष्णा कुमाराश्च प्रा कुमारि हये कुमार्या तु स्वा कुमाय॒तुम कुरुते दान *कुर्याच्च प्रति कुर्याच्चानुदि कुर्याच्चेत्प्रति __ मनुः १७१०, १९०७ , . ८९९ १७६४ मनुः १७०७ , १७०७, १९२७ कात्या. १२०१ ' मनुः १६९५, १९२९ विध. १११९ हारी. १२६६ यमः १३५२ वसि. १९७७ मनुः ७३८% नार. ७४७ वृहा. १६५३ अङ्गि. १११६ कात्या. १९४२ , १७१० नार. १९११ *कितवान् शी. *कितवेष्वव कितवेष्वेव किन्त्वपुत्रस्य किन्त्वलकृत्य किमस्मभ्यं जा किमाहृत्य वि किमिदं भाष विष्णुः १४७१ नार. १८८३ वेदाः १८९३ भा. ८४० वारा. १०७५

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