Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 37
________________ २६ हुआ, अन्य नहीं। तो, उन पर अन्यथा कल्पना नहीं की जा सकती । यह तो प्रचलित हो जाने की बात है । उसमें जन प्रवृत्ति ही अधिक सहायक है, जो सुगमता और सुकरता अधिक चाहती है । लिपिकर से लेखक सुगम है और सुकर । उसके अधिक प्रचलन में यह भाषा वैज्ञानिक कारण बहुत कुछ सम्भाव्य है । लिपि और लेख के समान ही लिपिकर और लेखक भी पर्यायवाची हैं | लिपि को उच्चारण भेद से लिबि कहते हैं, उसी प्रकार लिपिकर को लिबिकर । दोनों ही शब्द पाणिनीय अष्टाध्यायी में प्रयुक्त हुए हैं। एक शब्द और है - दिपिकर यह दिपि से बना है । दिपि और लिपि एक ही अर्थ में आते हैं । दिपि विदेशी शब्द है । इस पर अभी विचार हो चुका है । सम्राट अशोक के शिलालेखों में लिपि और दिपि दोनों का प्रयोग हुआ है । जहाँ उनके ब्रह्मगिरि और गिरनार के अभिलेखों में लिपिकर शब्द मिलता है, वहाँ शाहवाज़गढ़ी के १४वें लेख में दिपिकर शब्द प्रयुक्त हुआ है । डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है, “मौर्य युग में लिपि शब्द लेखन के लिए प्रयुक्त होता था । अशोक ने अपने स्तम्भ लेख और शिलालेखों को धम्मलिपि या धम्मदिपि कहा है । लघु शिलालेख सं० २ में लेख खोदने वाले को लिपिकर कहा गया है। "२ आगे चल कर सातवीं आठवीं शताब्दी के वल्लभी के शिलालेखों में दिविर या दिवीर शब्द का प्रयोग हुआ है। डॉ० व्हलर के अनुसार यह शब्द फारसी के देवीर से बना है, जिसका अर्थ होता है - लेखक । ये सासानी शासनकाल में पश्चिमी भारत में बस गये थे । शायद ऐसा ईरान और भारत के बीच व्यापारिक सम्बन्धों के बढ़ने के कारण हुआ हो । राजतरंगिणी में दिविर शब्द का प्रयोग हुआ है । क्षेमेन्द्र के लोक प्रकाश में गजदिविर ( बाज़ार लेखक ), ग्राम दिविर, नगर दिविर आदि अनेक भेद मिलते हैं । मध्यकाल में दिविरपति शब्द का उल्लेख मिलता है । दिविरपति संधिविग्रह कृत - संधि और युद्ध के मंत्री को कहते थे । डॉ० राजबली पाण्डेय 1 I लिखा है, “ “ In a large number of vallabhi inscriptions of the Seventh and eightth Centuries A. D., the minister of Alliance and war (Sandhi-Vigrahadhikrta), who was responsible for the preparation of the draft of documnts, is Called 'divirpati' १. 'कि लिपिलिबि' (३/२/२१) इति लिङ्गात् पस्य बो वा । 'लिबिः' सौत्रो धातुः- इति मुकुटः । अमरकोष २/८/१६. २. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, पाणिनिकालीन भारतवर्ष, ५ / २ / ३०६.* ३. भारतीयपुरालिपिशास्त्र, व्हलर, पृ. २०७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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