Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 112
________________ १०१ लिपि, मांगल्यलिपि, मनुष्यलिपि, अंगलीयलिपि, शकारि लिपि, ब्रह्मवल्ली लिपि, द्राविड़ लिपि, कनारि लिपि, दक्षिणि लिपि, उग्रलिपि, संख्यालिपि, अनुलोमलिपि, ऊर्ध्वधनुलिपि, दरद लिपि, खास्य लिपि, चीन लिपि, हूण लिपि, मध्याक्षरविस्तर लिपि, पुष्पलिपि, देवलिपि, नागलिपि, यक्षलिपि, गन्धर्व लिपि, किन्नरलिपि, महोरंग लिपि, असुर लिपि, गरुड लिपि, मृगचक्र लिपि, चक्र लिपि, वायुमरु लिपि, भौमदेव लिपि, अन्तरिक्षदेव लिपि, उत्तर कुरुद्वीप लिपि, अपर गौडादि लिपि, पूर्वविदेह लिपि, उत्क्षेप लिपि, निक्षेप लिपि, विक्षेप लिपि, प्रक्षेप लिपि, सागर लिपि, बज्रलिपि, लेख-प्रतिलेख लिपि, अनद्रतलिपि, शास्त्रावर्तलिपि, गणावर्त लिपि, उत्क्षेपावर्त लिपि, विक्षेपावर्त लिपि, पादलिखित लिपि, द्विरुत्तरपद सन्धि लिखितलिपि, दशोत्तरपद सिन्धिलिखित लिपि, अध्याहारिणी लिपि, सर्वरुत्संग्रहणीलिपि, विद्यानुलोम लिपि, विमिश्रित लिपि, ऋषितपस्तप्त लिपि, धरणो प्रेक्षणो लिपि, सवौषधनिष्यनन्दलिपि, सर्वसार संग्रहणी लिपि, सर्वभूतरुद्रग्रहणी लिपि ।" इन उपर्युक्त लिपियों के नामों से ऐसा लगता है कि वे प्राचीन भारत की विभिन्न जातियों और देशों से सम्बन्धित थीं। इनमें अन्तिम कतिपय गणित, वैद्यक, मंत्र, रसायन आदि विद्याओं के पारिभाषिक शब्दों से युक्त थीं। डॉ. भोलानाथ तिवारी का यह कथन कि-"इसमें ब्राह्मी और खरोष्ठी-इन दो का ही आज पता है । अन्यों में अधिकतर नाम कदाचित् कल्पित हैं।" ठीक प्रतीत नहीं होता। अन्यों को कल्पित मान लेना अनुपयुक्त है। नामों की आधारभूमि थी, यह स्पष्ट ही है। केवल ब्राह्मी और खरोष्ठी ही नहीं, अन्य लिपियों में भी कई आज उपलब्ध हैं। क्या संख्या और गणित लिपि आज नहीं हैं ? क्या द्राविड़, यूनानी और दक्षिणी लिपियाँ आज नहीं हैं ? तत्कालीन देश और जातियों से सम्बन्धित ये नाम आधारभूत थे, निराधार नहीं, कल्पित नहीं। जैन और बौद्ध सूचियों में कई नाम समान हैं। ___ डा. बूलर का कथन है कि3-जैन और बौद्ध सूची के आधार पर ब्राह्मी के अतिरिक्त चार और नाम ऐसे हैं, जिनकी पहचान ज्ञात लिपियों से की जा सकती है। एक है दायीं से बायीं ओर लिखी जाने वाली खरोष्ठी अथवा १. ललितविस्तर, १०, १२५, १६. इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में डॉ० राजबली पाण्डेय का अभिमत है. It is a work written in Sanskrit and deals with the biography of Lord Buddha. It is not possible to fix its date exactly. But as it was translated in the chinese in 308 A.D., it must belong to a time atleast one or two centuries Earlier. -Indian Palaeography, p. 24. quotation-I. २. 'हिन्दी भाषा', डॉ० भोलानाथ तिवारी, पृष्ठ ६८२. ३. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ ४-५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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