Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 64
________________ ५३ almost identical with Brahmi letters. Some others are a bit Complicated. what is most important, in some of the MohanJo-dro signs, it would oppear that the Brahmi charactestic of tagging on vowel signs to the Consonent letters is also found, besides combinations of two or more consonents."9 इसका हिन्दी अर्थ है-ईसा-पूर्व तीसरी शताब्दी की ब्राह्मी लिपि और मोहन-जोदरो लिपि के १५०० या २००० ईसवी-पूर्व के कनिष्ठ अथवा उत्तरवर्ती रूपों में विशेष समानता है। मोहन-जो-दरो लिपि के कुछ चिह्न ब्राह्मी वर्गों के सदश हैं अथवा लगभग वही हैं । कतिपय अन्य जटिल अवश्य हैं । दो या अधिक व्यञ्जनों के संयोजन के अतिरिक्त, व्यञ्जन वणों में स्वर-मात्राओं के लगाने की ब्राह्मी विशिष्टता भी मोहन-जो-दरो लिपि में प्राप्त होती है। ____ डॉ. उदयनारायण तिवारी ने भी अपने ग्रन्थ हिन्दी भाषाः उद्गम और विकास' में ऐसी ही मान्यता स्थापित की है। उनका कथन है, “इसका प्राचीनतम रूप सिन्धुघाटी लिपि में उपलब्ध होता है और वस्तुतः यही लिपि (सिन्धु घाटी लिपि) चित्र, भाव तथा ध्वन्यात्मक लिपि की विभिन्न अवस्थाओं से होती हुई ब्राह्मीलिपि में परिणत हुई थी ।"२ निम्नांकित तुलनात्मक चार्ट से यह स्पष्ट हो जायेगा -- वर्तमान सिन्धु लिपि ब्राह्मी लिपि ब्राह्मी लिपि हिन्दी ::: x.: :: + ल ururta > 6800 8 Soad, 1. Dr. Suniti Kumar Chatterji, Indian system of writing, Publication ___division,Govt-of India, 1966, P.9. २. डा. उदयनारायण तिवारी, 'हिन्दी भाषा : उद्गम और विकास', पृ. ५८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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