Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 91
________________ ८० "अट्टवरिसकप्पेण कुमारें पुण्णावज्जिय विज्जापारें । गुरुपादण निमित्त मंतत्त्थइँ जाणियाइँ पढियाइँ वसत्थइँ । संपाइयति वग्गफल रसियउ नीसेसाउ कलउ अब्भसियउ ।" १ अर्थ- -आठ वर्ष की आयु होने पर कुमार ने सकल विद्याओं का पार पा लिया। गुरु के पढ़ाने के निमित्त से उसने मंत्रार्थी अर्थात् सूत्रों के मंतव्यों को और शास्त्रों को पहले से ही पढे हुए के समान जान लिया । त्रिवर्गफल अर्थात् धर्म, अर्थ व काम का सम्पादन करने वाली और चित्त में रस अर्थात् आनन्द उत्पन्न करने वाली निःशेष कलाओं का अभ्यास कर लिया । 'जिणदत्तचरिउ' हिन्दी के आदिकाल की महत्त्वपूर्ण रचना है । कविवर रह ने इसे वि. सं. १३५४ में रच कर पूरा किया था। इसके अनुसार बालक ने १५ वर्ष की आयु में विद्यारम्भ किया और बीस वर्ष की आयु तक सम्पूर्ण विद्याओं और कलाओ में प्रवीण हो गया । 3 हिन्दी के आदिकाल की ही एक दूसरी कृति है - प्रद्युम्न चरित्र । इसके रचयिता सधार वि. की १४वीं सदी के उत्तमकोटि के afa थे। उन्होंने भी प्रद्युम्न का विद्यारम्भ १५ वर्ष की आयु में माना है । प्रद्युम्न की वृद्धि कुशाग्र थी । वह शीघ्र ही लक्षण, छन्द, तर्क, नाट्य, धनुष एवं बाणविद्या में पारंगत हो गया । इस सन्दर्भ में भट्टारक सोमसेन का 'त्रैर्वाणकाचार' एक दृष्टव्य ग्रंथ है । उसमें सभी संस्कारों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। उनका स्पष्ट मत है कि लिपि संस्कार चौलकर्म के बाद और उपनयन से पूर्व होना चाहिए । उन्होंने लिखा है- "द्वितीयजन्मनः पूर्वमक्षराभ्यासमाचरेत् । मौञ्जीबन्धनतः पश्चाच्छास्त्रारम्भो विधीयते ॥ पञ्चमे सप्तमे चाब्दे पूर्व स्यान्मौञ्जिबन्धनात् । त चैवाक्षराभ्यासः कर्त्तव्यस्तदगयने ।। " अर्थ -- बालक को द्वितीय जन्म (द्वितीय संस्कार ) अर्थात् उपनयन संस्कार से पूर्व अक्षराभ्यास कराना चाहिये और उपनयन के बाद शास्त्रारम्भ होना Jain Education International १. जम्बूस्वामी चरिउ, ४/९, पृष्ठ ७०. २. जिणदत्तचरिउ, डा० माताप्रसाद गुप्त सम्पादित, महावीर शोध संस्थान, जयपुर, १६६६, भूमिका, पृष्ठ ४. ३. वही, पद्य ६३ वाँ, पृष्ठ २६. ४. प्रद्युम्नचरित्र, शोध संस्थान, जयपुर, पचसंख्या १३७-३८, पृष्ठ २९. ५. सोमसेन, त्रैवर्णिकाचार, ८/१६३-६४. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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