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एक कड़ी का काम किया है।' आचार्य विनोबा भावे भारत की सभी भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखने के पक्ष में हैं। पिटमन के शब्दों में संसार में यदि कोई पूर्ण वर्णमाला है, तो वह हिन्दी की है।
कुटिल लिपि __टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखे जाने के कारण इसे कुटिल लिपि कहते हैं । गुप्तलिपि में जो अक्षर लिखे जाते थे, कुटिल लिपि में उनके नीचे की ओर खड़ी रेखाएँ बाँयी ओर मुड़ी हैं तथा स्वर की मात्राएँ टेढ़ी और लम्बी हो गई हैं। लिपि के लिए यह कुटिल शब्द 'देवललेख' (उत्तरप्रदेश) में देखने को मिलता है। वहाँ 'कुटिलाक्षराणि' लिखा हुआ है। "विक्रमांकः देवचरित' में भी कुटिल लिपि का उल्लेख है। बाद में, इसका दूसरा नाम पड़ाविकटाक्षरा । गुप्त नरेश आदित्यसेन के अपसद (गया जिला) और विष्णुगुप्त के मंगराव (शाहाबाद जिला) लेख भी इसी विकटाक्षरा में लिखे गये हैं। यह लिपि पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, आसाम, उड़ीसा, मनीपुर और नेपाल में प्रचलित थी। वहाँ के अधिकांश लेख इस लिपि से सम्बन्धित हैं।
यह कोई पृथक लिपि नहीं थी, इसी के अक्षरों में कुछ परिवर्तन कर नागरी और शारदा लिपियों का विकास हुआ था। आ, हलन्त और उपपध्मानीय का प्रयोग तो दोनों में (कुटिल और नागरी) समान ही था । कोई अन्तर नहीं था। मंदसौर, मधुवन और जोधपुर आदि लेखों में कुटिल लिपि के अक्षर देवनागरी से बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। कुटिल लिपि का समय छठी से नौवीं सदी तक माना जाता है।
शारदा लिपि
पश्चिमी गप्त लिपि से शारदा लिपि का विकास हुआ। आठ सौ ईसवी के आस-पास काश्मीर और उत्तर-पूर्वी पंजाब में इसका अस्तित्व पाया जाता है। इसके तीन रूप हैं-टक्री, लण्डा और गुरुमुखी । श्री ग्रियर्सन के अनुसार शारदा. टक्री और लण्डा-तीनों एक लिपि से उत्पन्न होने के कारण भगिनीस्वरूपा हैं, किन्तु बूलर टक्री को शारदा से उत्पन्न मानता है । अर्थात् वह शारदा की भगिनी नहीं पुत्री थी। टकी टक्क लोगों की लिपि थी। टक्क एक जाति थी जो प्राचीन साकल और आधुनिक स्यालकोट में रहती थी। इस लिपि के स्वर अपूर्ण हैं और इसके अनेक रूप पजाब के उत्तर तथा हिमालय के निचले भागों में बोले जाते हैं। डॉ. बूलर इसे जम्मू और १. भाषा (पत्रिका), वर्ष ६, अंक ४, पृष्ठ ६. २. प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृष्ठ २५२.
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