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देवताओं को भी लेख कहते हैं, शायद इस कारण कि घर-द्वारों पर रेखाकृतियों से देवताओं के चित्र बनाने की प्राचीन प्रथा है। इसी कारण उन्हें रेख अथवा लेख संज्ञा से अभिहित किया गया है । यहाँ पर भी देवताओं के चित्र उत्कीर्ण करने की बात है। अर्थात् चित्र खोदने के अर्थ में भी लिख धातु आती थी।
अमर कोषकार ने 'लिखिताक्षर विन्यास' को लिपि कहा है । उसका कथन है --"लिखिताक्षर विन्यासे लिपिलिबिरुभे स्त्रियौ' । इसका समास विग्रह है-'लिखितं चाक्षरविन्यासश्च, अनयोः समाहारः, तस्मिन् ।'२ इसका अर्थ है-लिखित हो और अक्षर विन्यास हो, उसमें स्त्रीलिंगवाची लिपि अथवा लिबि होती है । उच्चारण भेद से लिपि को लिबि कहते हैं । लिखितं-अर्थात् लिखित हो-अर्थात् खुदा हुआ याछिन्दित हो । क्या हो? अक्षर विन्यास-अक्षरों की आकृति । इसका अर्थ हुआ कि खदी हई अक्षरों की आकृति । खुदा हुआ अर्थ लिख् धातु से निकला है, अतः यदि यह कहा जाये कि लिखे हुए अक्षरों की आकृति को लिपि कहते हैं, तो अन्यथा न होगा। किन्तु प्रश्न तो यह है कि खुदे हुए अथवा लिखे हुए अक्षर विन्यास में 'लिपि लिप्यते' वाली बात कैसे घटित हुई । यदि घटित नहीं होती तो उसका लीपनापोतना अर्थ व्यर्थ हो जाता है। किन्तु, प्राचीन ग्रन्थों से विदित है कि जिस वस्तु पर भी अक्षर विन्यास होता था, उसे पहले लीपा-पोता अथवा पालिश की जाती थी। एलबरूनी का कथन है कि भोज पत्र पर पहले पालिश की जाती थी फिर उस पर लिखा जाता था। ताड़पत्र को भा मुलायम पत्थर अथवा शंख से रगड़ कर लिखने के पूर्व चिकना कर लिया जाता था। इसी भाँति सूती कपड़े पर पालिश करने का रिवाज था । पत्थर को भी पहले मुलायम किया जाता था, फिर उस पर पालिश होतो था, तदुपरि अक्षर-विन्यास छैना-हथौड़े, कील या अन्य किसी वस्तु से किया जाता था। ५ जैन-ग्रन्थों में लिखा है-"पूर्वस्मिन युगे काष्ठफलकादिकं सुधाप्रभृतिद्रव्यैरुपलिप्य अंगुलिभिर्नडा अक्षराणामाकृतिविधीयते स्म।" इसका अर्थ है-पहले समय में काष्ठफलक आदि पर, सुधा प्रभृति द्रव्यों से लेपन कर, अंगुली अथवा नाखूनों से अक्षर विधान किया जाता था।
१. "लेखः देवः । लेखः कस्मात् ? पुरा हि अनुमतां दिव्यानां देवानां विग्रहात्मिका रूपवर्णरचना
भित्तिष लिखित्वैव क्रियते स्मेति लेखः । अद्यापि विवाहादिकौतुकावसरे द्वारभित्तिषु परम्परात्वेन गणेशगौरीविष्णुगजहयस्वस्तिकादीनां पाण्डुकगरिकादिभिर्लेखनं विधीयते ।"
'लेखर्षभोऽनिलः ' जिनसहस्रनाम १०८, श्रुतसागरी व्याख्या और
'लेखो लेख्ये सुरे' , मेदिनीकोश, 'ख'-४. २. अमरकोष २/८/१६. ३. इण्डिया, १.१७१, (सचाऊ) ४. राजेन्द्रलाल मित्र, गाफ पेपर्स, पृष्ठ १४. ५. देखिए मैसूर और कुर्ग गजेटियर-१८७७, १-४०८. ६. इण्डियन पेलियोग्राफी, डॉ. राजबली पाण्डेय, भाग १, पृष्ठ ७७ ७. देखिए भगवती सूत्र-संस्कृत व्याख्या.
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