Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
पञ्चमो भागः
१२७
मलकर कपड़े से छान लें तथा उस छने हुवे पानीको मिट्टीकी नांद आदि में भर कर धूप में रख दें । इस पानी पर जो मलाई जमे उसे निकाल कर अन्य कांचादिके पात्रमें सुरक्षित खर्खे । इसी प्रकार ज्योंय मलाई जमती जाय उसे निकालते रहें और अन्तमें जो गाद रह जाय उसमें और पानी दें और इसी प्रकार उससे भी शिलाजीत निकाल लें ।
रसप्रकरणम् ]
( यो. र. ;
(७६०९) शिलाजतुशोधनम् यो. चि. म. । अ. ९ शा. सं. । सं. २ अ. ११ ) हेमाद्याः सूर्यसन्तापात् द्रवन्ति गिरिधातवः ॥ जत्वाभं मृदुमृत्स्नाभं तद्भवेच्च शिलाजतु । शिलाजतु समानीय ग्रीष्म तप्ता शिलाच्युतप ॥ गोदुग्धैखिफलकाचे द्रावैध मर्दयेत् । आतपे दिनमेकैकं तच्छुष्कं शुद्धतां व्रजेत् ॥
+
+
+
मुख्य शिलाजतुशिलां सूक्ष्मखण्डप्रकल्पिताम् । निक्षिप्यात्युष्ण पानीयैर्यामैकं स्थापयेत्सुधीः ॥ मर्दयित्वा ततो नीरं गृह्णीयात्रगालितम् । स्थापयित्वा च मृत्पात्रे धारयेदातपे बुधः ॥ उपरिस्थं घनं यत्स्यात् तत्क्षिपेदन्यपात्रके । धारयेदातपे धीमानुपरिस्थं घनं नयेत् ॥ एवं पुनः पुनर्नोत्वाद्विमासाभ्यां शिलाजतु । aaratai at क्षिप्तं लिङ्गोपमं भवेत् ॥ निर्धूमं च ततः शुद्धं सर्वकर्मसु योजयेत् । अधःस्थितं च यच्छेषं तस्मिन्नीरं विनिक्षिपेत् विमर्थ धारयेद्धर्मे पूर्ववचैव तन्नयेत् ।
।
स्वर्णादि धातुओं वाले पर्वतोंसे सूर्य संतापसे पिघलकर जो लाख या कोमल मिट्टीके समान द्रव पदार्थ निकलता है उसे शिलाजीत कहते हैं । इस प्रकार पत्थर से निकले हुवे शिलाजीतको १-१ दिन गोदुग्ध, त्रिफला काथ और भंगरेके रसमें घोट कर धूप में सुखा लेने से वह शुद्ध हो जाता है।
X
X X शिलाजीतके उत्तम पत्थरको कूट कर अत्युष्ण पानी में डाल दें और एक पहर पश्चात् अच्छी तरह
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(७६१०) शिलाजत्वा दियोगत्रयम् ( ग. नि. । पाण्डु. ७ ) गोमूत्रेण पिबेत् कुम्भकामलायां शिलाजतु । मा माक्षिकातुं वा किटं वाऽथ हिरण्यनम् ॥
गोमूत्र के साथ शिलाजतु या स्वर्णमाक्षिक भस्म अथवा स्वर्णकिट्ट सेवन करने से १ मासमें कुम्भ कामला नष्ट हो जाती है ।
(७६११) शिलाजत्वादिलौहम् (र. रा. सु. । यक्ष्मा. ; वृ. नि. र. ) शिलाजतुयुतं लोहं वलं तु विधिमारितम् । पथ्याशी सेवते यस्तु यक्ष्माणं व्यपोहति ॥
विधिवत् निर्मित लोह भस्म और शिलाजीतएकत्र मिला कर सेवन करने और पथ्य. पूर्वक रहने से यक्ष्माका नाश होता है ।
(७६१२) शिलाजत्वादिवटी (भै. र. । प्रमेहा. )
शिलाजत्वभ्र हेमानि लौहगुग्गुलुङ्गणम् । केशराजस्य तोयेन मयेदिवसद्वयम् ॥ वलमानां वटीं कृत्वा शैवालसलिलेन च । प्रातः प्रातः प्रयुञ्जीत शुक्रमेहनिवृत्तये ॥
For Private And Personal Use Only