Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 560
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org मिश्रप्रकरणम् ] शुद्ध हिंगुल, शुद्ध बछनाग, ताम्र भस्म, लोह भस्म, शुद्ध हरताल, सुहागेकी खील, जीरा और अफीम समान भाग लेकर सबको एकत्र ( पानीके साथ) खरल करके आधे जौके समान गोलियां बना लें। पञ्चमो भागः (८७५५) क्षारनिर्माणविधिः इति क्षकारादिरस प्रकरणम् ( योगरत्नाकर) क्षारवृक्षस्य काष्ठानि शुष्काण्यमौ प्रदीपयेत् । तद्भस्म मृत्पात्रे क्षिप्त्वा नीरे चतुर्गुणे ॥ विमर्थ धारयेद्रात्रौ प्रातरच्छं जलं नयेत् । तीरं क्वाraat यावत्सर्वं विशुष्यति ॥ ततः पात्रात्समुद्धृत्य क्षारो ग्राह्यः सितप्रभः । चूर्णाभः प्रतिसार्यः स्यात्तैजसः क्वाथवत्स्थितः॥ इति क्षारद्वयं वीमान् युक्तकार्येषु योजयेत् ॥ अथ क्षकारादिमिश्रप्रकरणम् जिस वृक्षका क्षार बनाना हो उसके सूखे काठको जलाकर राख करें और उसे मिट्टीकी नांदमें डालकर उसमें 8 गुना पानी डालकर अच्छी तरह मिला दें एवं रात भर रक्खा रहने दें। फिर दूसरे दिन ऊपरसे स्वच्छ पानी नितार कर उसे इतना पकावें कि सब पानी सूख जाय और कढ़ाई में सफेद चूर्ण रह जाए । इसे " प्रतिसारणीय क्षार" कहते हैं । ૬૯ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इनके सेवन से शोथ, अग्निमांद्य, दुस्तर संग्रहणी, विषम ज्वर और जीर्णश्वरका नाश होता है । पथ्य — दूध भात । अपथ्य - लवण और जल । ५४५ यदि सब पानी न जलाकर क्षारको द्रवरूप ही रक्खा जाय तो उसे " तैजस क्षार" कहते हैं। दोनों प्रकारके क्षार यथोचित अवसर पर प्रयुक्त करने चाहियें | (८७५६) क्षारपिप्पली (१) For Private And Personal Use Only (व. से. उदरा. ) चपलायाः पलं पञ्च यत्राग्रं तावदेव तु । सामुद्रलवणानाञ्च तावन्मात्रं प्रदापयेत् agrat | शिखर्यांस्तथैव च । शिरोषो लोधवृक्षश्च विशाखामाणकन्दकम् ॥ सुधा च सुरपुष्पञ्च शम्पा कदलसञ्चयम् । वरुणं शिग्रुमूलश्च वाटपालं चित्रकं तथा ॥ एषां पञ्चपलान्भागान्पलाशात्पञ्चविंशतिम् । क्षारं दत्त्वा तु सर्वेषां पचेत्तत्र जलाढके ॥ गोमूत्रं तावदेवात्र साधयेच्च यथाविधिः । भक्षयेद् घृतसंयुक्तां यकृत्प्लीहहरां पराम् ॥ वातमष्टीकाञ्चैव गुल्मं हन्ति त्रिदोषजम् ॥

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