Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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२६८
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ सकारादि
उसे तेलमें भिगो दें और उसके एक सिरेको । क्वाथपादं पचेतैलं कल्कं कृष्णायसामृतम् । चिमटे आदिसे पकड़ कर दूसरे सिरेको दियासलाई- पचेत्तैलावशेषं च तेन लेप्यं भगन्दरम् ॥ से जला दें एवं उसके नीचे कांच या चीनी आदि- असाध्यं साधयत्याशु पक्वं कृमिकुलान्वितम् ॥ का पात्र रख दें । इस पात्र में जो तैल एकत्रित क्वाथ- सेंधा नमक, चीता, दन्तीमूल, हो उसे सुरक्षित रक्खें ।
पलाश (ढाक)की छाल और इन्द्रायणकी जड़ इस तेलको मालिशसे और इसे खानेसे | १-१ सेर ले कर ८० सेर गोभूत्रमें पकावें और बाहुकम्प, शिर:कम्प, जंघाकम्प, एकांगवात तथा १० सेर शेष रहने पर छान लें। और भी अन्य अनेक बातज रोग नष्ट होते हैं । २॥ सेर तेल में यह काथ और १२॥-१२॥ (७९९९) सैन्धवाद्यं तैलम् (१) ।
तोले कृष्ण लोह और शुद्ध बछनागका चूर्ण मिला
कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो ( रा. मा. । कर्णरोगा. २)
तेलको छान लें। सिन्धुत्थहिङ्गसुरदारुवचाः सकुष्ठ
इसे लगानेसे असाध्य और कृमियोंसे भरा विश्वौपधाः समवृता विनिधाय पक्वम् ।
हुवा भगन्दर भी नष्ट हो जाता है। तैलं सगोमयरसं श्रुतिपूरणेन
(८००१) सैन्धवाद्य तेलम् (३) हन्ति प्रसह्य सकलानपि कर्णरोगान् ॥ (भै. र. । ऊरुस्तम्भा. ; ग. नि. । तैला. २ :
कल्क-सेंधा नमक, हींग, देवदारु, बच, च. द. । वातव्या. २२; वृ. मा.। वाता. ; कूठ और सेठ, इनका समान भाग मिश्रित चूर्ण | भा. प्र. म. खं. २ । ऊहस्त.) २० तोले ।
द्वे पले सैन्धवात्पश्च शुण्ठ्या ग्रन्थिकचित्रकात् । २ सेर तेल में यह कल्क और ८ सेर गायके | द्वे द्वे भल्लातकास्थीनि विशति तथाऽऽढकम् ॥ गोबरका रस मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब आरनालं पचेत्पस्थं तैलस्यैरण्डजस्य च । पानी जल जाय तो तेलको छान लें। गृध्रस्यूरुग्रहार्मोतिसर्वातविकारनुत् ।।
इसे कानमें डालनेसे समस्त कर्णरोग नष्ट कल्क-सेंधा नमक १० तोले, सेठ २५ होते हैं।
तोले, पीपलामूल और चीतामूल १०-१० तोले
एवं शुद्ध भिलावेके ४० दाने ले कर सबको एकत्र __(८०००) सैन्धवाद्यं तैलम् (२) ।
पीस लें। (( धन्व. ; र. र. । भगन्दरा )
२ सेर अरण्डीके तेलमें यह कल्क और ८ सेर न्य चित्रकं दन्ती पलाशश्चेन्द्रवारुणी। कांजी मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी गोमूत्रेऽष्टगुणे पक्त्वा ग्राह्यमष्टावशेषितम् ॥ जल जाय तो तेलको छान लें।
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