Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 617
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रण] पश्चमो भागः (चि. प. प्र.) ६०५ ८०१६ स्वर्जिकार्य तै० दुष्ट अण, कफज नाडीव्रण : ८०४० सिक्थकादि व्रण ८०१७ , , नाड़ी ब्रश ८०५३ सुधादि लेपः अग्निदग्ध व्रण. ( उत्तम ८५३८ हरिद्रादि , व्रण सरल योग) ८५४६ हंसपादी ,, नाड़ी ब्रण -८५६२ हरिद्रादि , बगको फाड़ देता है। ८५५१ हिंस्राय , शोधन रोपण ८५७० हस्तिदन्तादि ,, अत्यन्त कठिन ब्रणको फोड़ता है। लेप-प्रकरणम ८५७८ हेमक्षीर्यादिले० व्रणशोथको फाड़ देताहै। ७४४४ शणमूलादिलेपः कच्चे फोड़ेको पकाता है। " ७४५३ शरपुंखादियोगः रोपण ( सरल योग) मिश्र-प्रकरणम् ८०२१ सप्तदलादिलेपः ब्रण शोथ ८३९९ मूत्रवर्तियोगः ब्रणशोधक ८०२९ सर्जिकादि , , ८४१० स्नुकपत्रयागः कठिन ब्रण ८०३८ सारिवादि , ब्रणशोधक ८४११ स्नुहीशीराधा ८०३९ सिक्थकघृतम् ब्रण वर्तिः नाड़ीव्रण, भगन्दर (५४) शिरोरोगाधिकारः कषाय-प्रकरणम् तैल-प्रकरणम् ७२२७ शिरोविरेचनीयो ७४०७ शताहादितैलम् शिरशूल, वातकफज दशको महाकषायः शिरोरोग : तिमिर ७७३९ षडङ्गक्वाथः शिर भ्र कर्णशूल, अर्धा- ७४२९ श्लेष्मान्तकादि वभेद, सूर्यावर्त, शंखक, तैलम् पलित दन्तपात, दन्तपाड़ा ७७६० षडविन्दु, वातविकार, कृमिजन्य चूर्ण-प्रकरणम् शिरोरोग ७३३३ श्रीखण्डादियोगः शिरपीड़ा ७७६२ . " समस्त शिरोरोग, बाल गिरना (दन्त पौष्टिक) घृत-प्रकरणम् ७९८७ सारिवाचं , दारुणक रोग, खाज ७३७४ शतावर्यादियमकम् समस्त ऊर्ध्वजत्रुगतरोग; ८५४५ हरिद्राचं , कफज तथा सान्निपातिक ७७५५ षड्विन्दु घृतम् शिरशूल (नस्य) शिरोरोग For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633