Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तैलप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
४६९
धतूरेके ताजे फलोंका रस १ सेर और कड़वा | कासं पश्चविधं हन्ति तथा श्वासमुरःक्षतम् । तेल ४ सेर लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर २ घड़ी हीवेराद्यमिदं तैलं बलवर्णाग्निवर्द्धनम् ॥ तक पकावे ( इतने समयमें पानी जल जायगा ) श्रीमद्गहननाथेन निर्मितं विश्वसम्पदे ॥ फिर तेलको छान लें।
___ कल्क--सुगन्धबाला, खस, लोध, कमलकेसर, ___यह तेल दुष्ट प्रस्वेद (पसीने) और सूतिका
तेजपात, नागकेसर, बेलगिरी, नागरमोथा, कचूर, विकारोंको नष्ट करता है।
सफेद चन्दन, पाठा, कुड़ेकी छाल, इन्द्रजौ, त्रिफला, (८५५३) हीवेरायं तैलम् सोंठ, बहेड़ेकी छाल, आमकी गुठली, जामनकी ( भै. र. । रस.पि.)
गुठली और लाल कमलकी जड़ ११-१। तोला लेकर
कल्क ननावें । हीवेरं नलदं लोभ्रं पद्मकेशरपत्रकम् । नागपुष्पश्च बिल्वञ्च भद्रमुस्तां तथा शठी ।।
२ सेर तिलके तेलमें यह करक और ८ सेर चन्दनचव पाठा च कटजस्य फलत्वचम। । लाखका रस तथा २ सेर दूध मिलाकर यथाविधि त्रिफला शृङ्गवेरश्च भृतवासत्वचस्तथा ॥
पाक सिद्ध करें। आम्रास्थिजम्बुसारास्थि मूलं रक्तोत्पलस्य च । यह तेल तीनों प्रकारके रक्तपित्तको अवश्यही पतेषां कार्षिकै गैस्तैलपस्थं विपाचयेत् ।। | नष्ट कर देता है । इसके अतिरिक्त यह पांच प्रकालाक्षारसाढकञ्चैव क्षीरं स्नेहसमं भवत् । रकी खांसी, उरःक्षत और श्वासको भी नष्ट करता रक्तपित्तश्च त्रिविधं नाशयेदविकल्पतः ॥ तथा बलवर्ण और अग्निकी वृद्धि करता है।
इति इकारादितैलप्रकरणम्
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