Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अमनप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
-
(८०९६) सूतकाद्यञ्जनम्
(८०९८) सैन्धवादिवतिः (१) (व. से. । नेत्ररोगा.)
(व. से. । नेत्र. , वृ. मा.) मृतकं गन्धकोपेतं चारीरसमूच्छितम् । सैन्धवं त्रिफला कृष्णा कटुका शङ्खनामयः । अननं दृष्टिदं नृणां नेत्रामयविनाशनम् ॥ सताम्ररजसो वत्तिः शुद्धशुक्रविनाशिनी ॥
शुद्ध पारा और गन्धक समान भाग ले कर सेंधा नमक, हर', बहेड़ा, आमला, पीपल, कजली बनावें और फिर उसे चांगेरी (चूके) के कुटकी, शंखनाभि, और ताम्र; इनका बारीक चूर्ण रसमें खरल करके सुखा लें।
समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर पानीके
साथ खरल करके वर्तियां बना लें । इसे आंखोंमें लगानेसे नेत्रोंको ज्योति तीब्र
। इसे आंखमें लगानेसे व्रणरहित शुक्रका नाश होती और समस्त नेत्ररोग नष्ट होते हैं।
होता है। (८०९७) सूर्यप्रभावर्ती
(८०९९) सैन्धवादिवतिः (२) (र. र. स. । उ. अ. २९) ( वा. भ. । उ. अ. १६ ; वं. से. । नेत्ररोगा. ( रक्तचन्दनमनिष्ठा तिन्तिणीफलसक्तुकैः । सैन्धवं त्रिफला व्योष शङ्खनाभिः समुद्रजः । अभयालोध्रकतकनिशाशङ्खकणोषणैः ।। फेनः शैलेयकं सों वर्तिः श्लेष्माक्षिरोगनुत् ।। मनःशिलाकरञ्जाक्षबीजोग्राफेनसैन्धवैः ।।
| सेंधा नमक, हरे, बहेड़ा, आमला, सेठ, अजाक्षीरैः समविषैर्वर्तयो विहिता हिताः ॥
मिर्च, पोपल, शंखनाभि, समुद्रफेन, भूरिछरीला शुक्लार्ममांसपिल्लेषु ग्रन्थिगण्डार्बुदेषु च ॥
और राल; इनका समान भाग चूर्ण ले कर सबको लाल चन्दन, मजीठ, तिन्तडीक (इमली) के एकत्र मिला कर पानीके साथ खरल करके वर्तियां फल, सक्तक विष, हर, लोध, निर्मलीके फल, । बना लें। हल्दी, शंख, पीपल, काली मिर्च, मनसिल, करञ्ज- इन्हें आंखमें लगानेसे कफज नेत्र रोग नष्ट बीज (करजुवेकी गिरी), बहेड़ेके बीज (गुठलीकी गिरी), बच, समुद्रफेन,सेंधानमक और बछनाग इनका चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर (८१००) सैन्धवाद्यञ्जनम् (१) बकरीके दूधमें खरल करके वर्तियां बना लें।
(वै. म. र. । पटल १६ ) इन्हें आंखमें लगानेसे शुक्ल, अर्म, नेत्रमांस, | पटुकुनटीवरटीगृहमागधिकाजातिकुसुमरजनिपिल्ल, नेत्रग्रन्थि, गण्ड और नेत्रार्बुदका नाश
रजः। होता है।
| पिलं हरेनिघृष्टं क्षौद्रयुतं कांस्यताम्राभ्याम् ।।
For Private And Personal Use Only