Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ मनुयोगद्वारी _ ननु 'त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी' इत्यायेकवचनमदर्शनेनैव संशासनिसम्बन्ध कथनं सिद्धम् , कथं पुनखिमदेशिका आनुपूर्व्यः इत्यादि बहुवचनान्तनिर्देश: कृतः ? इति चेदुच्यते-आनुपूादि द्रव्याणां प्रति मेदमनन्तव्यक्तिख्यापनार्य नेगमव्यवहारयोरित्यंभूताऽभ्युपगमप्रदर्शनार्थ च बहुवचनान्तत्वेन निर्देशः कत इति नास्ति कश्चिद् दोषः। __ शंका-"त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी" इत्यादि एकवचन के कथन से ही संज्ञा संज्ञी सम्बन्धका कथन जव सिद्ध हो जाता है तब फिर क्यों सूत्रकार ने "त्रिप्रदेशिका आनुपूर्व्यः" तीन इत्यादि बहुवचनान्त पद का निर्देश किया? ___ उत्तर-आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का हरएक भेद अनन्त व्यक्तिरूप है इस बात को ख्यापनकरने के लिये और नैगम एवं व्यवहार नय का ऐसा सिद्धान्त है इस बात को प्रदर्शित करने के लिये बहुवचनका प्रयोग किया है । तात्पर्य कहने का यह है कि "त्रिप्रदेशा आनुपूर्व्यः" ऐसा जो सूत्रकारने कथन किया है उससे वे यह कहना चाहते हैं कि त्रिप्रदेशिक एक द्रव्यरूप एक ही आनुपूर्वी नहीं है किन्तु त्रिप्रदेशिक द्रव्य अनन्त हैं-अतः अनन्त आनुपूर्वियां हैं। इसलिये त्रिप्रदेशिकरूप भिन्न २ अनन्त आनुपूर्वियों की सत्ता सूचित करनेके लिये "त्रिप्रदेशिका आनुपूर्व्यः" ऐसा बहुवचनान्त पद का प्रयोग किया गया है।
શકા– ત્રિપ્રદેશિક ઈત્યાદિ એક વચનના કથન દ્વારા જ સંજ્ઞા સી पर्नु जयन ने सिद्ध य य छ त। सूत्रारे "त्रिप्रदेशिका भानुपूर्वः" વિપ્રદેશિક આનુપૂર્વીએ ઈત્યાદિ બહુવચનાન્ત પને નિશ શા २२ व्या छ ? 1 ઉત્તર-આનુપૂર્વી આદિ ને પ્રત્યક લે અનંત વ્યક્તિરપ (પાથરૂપ) છે,” એ વાતનું પ્રતિપાદન કરવાને માટે અને નૌગમ તથા વ્યવહાર નયને એ સિદ્ધાંત છે એ વાતને પ્રદર્શિત કરવા માટે બહાચनना प्रयोग ५५ ४२पामा भाये। छ मायननु तामे " त्रिदेशाः आनुपूय:" I t२नु सूत्रारे २ यन तना बा तसा એ વાત પ્રકટ કરવા માગે છે કે ત્રિપ્રદેશિક એક દ્રવ્યરૂપ એક જ આનુપૂવી નથી પરંતુ ત્રિપ્રદેશિક દ્રવ્ય અનંત હોવાને લીધે અનન્ત આવી છે. તેથી ત્રિાદેશિક રૂપ જુદી જુય અનંત આનુપવાની સત્તા (અસ્તિત્વ) थित ४२वाने मारे "त्रिप्रदेशिका जानुपूर्व्यः" " निशि मानु " એવાં બહુવચનાન્ત પદને પ્રયોગ કરવામાં આવ્યું છે. એ જ પ્રમાણે ચાર
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