Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे पारिणामिकनिष्पन्नम् ? औदयिकौपशमिकक्षायिकपारिणामिकनिष्पन्नम्-औदयिकमिति मानुष्यं, उपशान्ताः कषायाः, क्षायिक सम्यक्त्वं, पारिणामिको जीवः । एतत् खलु तन्नाम औदयिकौपशमिकक्षायिकपरिणामिकनिष्पन्नम्२, कतर तन्नाम औदयिकोपशमिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम् ?, औदयिकौपश(कयरे से नामे उदइय उपसमियखायपारिणामियनिष्फण्णे?) हे भदन्त !
औदायिक औपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न जो सान्निपातिक भाव रूप भंग है वह कैसा है?
उत्तर-( उदइय स्वसमियखइयपारिणामियनिष्फण्णे) औदायिक औपशमिक, क्षायिक, एवं पारणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ भंग ऐसा है-(उदइएत्ति मणुस्से उवसंता कसाया, खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे) यहां मनुष्यगति यह औकि है, उपशांत हुई कषायें औपशमिक भावरूप है, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकरूप है। तथा जीवत्व यह पारिणामिक रूप है । (एसणं से णामे उदइयउवसमिय खायपारिणामियनिष्फण्णे) इस प्रकार औदयिक, औपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक इन चार भंगों से निष्पन्न हुआ इस नाम का यह-द्वितीय भग है। (कयरे से णामे उदय उपसमियखओवस. मियपारिणामियनिप्फण्णे ?) हे भदन्त ! औदयिक, औपशमिक, क्षायो
प्रश्न-( कयरे से णामे उदइयउबसमियखइयपारिणामियनिष्फण्णे) है ભગવન! દયિક, ઔપથમિક, ક્ષયિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સંયોગથી નિષ્પન્ન થતે જે સાત્રિપાતિક ભાવરૂપ બીજો ભંગ છે તેનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(उदइयउपसमियखइय गरिणामियनिष्फण्णे) मोयि, भोपમિક ક્ષાયિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવેના સંગથી બનતા सान्निाति भानुं २१३५ २ १२नुछे-(उदइए त्ति मणुस्से, उवसंता कसाया, खड्यं सम्मत्तं, पारिणामिए जीवे) मा सान्निपाति भावमा मनुष्यति माह થિ, ભાવ રૂ૫ છે, ઉપશાન કષાયે પશમિક ભાવ રૂ૫ છે, ક્ષાયિક સમ્યકત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે અને જીવવ પરિણામિક ભાવ રૂપ છે. भय से णामे उदइयउपसमियखइयपारिणामियनिष्फण्णे) मा प्रा२नु मोयि:
પશમિ ક્ષાયિક અને પરિણામિક આ ચાર ભાવે.ના સંગથી બનેલા સાનિપાતિક ભાવ રૂપ બીજા ભંગનું સ્વરૂપ છે.
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