Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० ७ सू० २ उपध्यादिस्वरूपनिरूपणम् ९९ त्रिपकारकं प्रणिधानं ज्ञेयम् । 'पुढवीकाइयाणं पुच्छा' पृथिवीकायिकानाम् पृच्छा हे भदन्त ! पृथिवीकायिकानाम् जीवानां कतिविधं प्रणिधानं भवतीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगे कायपणिहाणे पन्नत्ते' एकं कायपणिधानं प्रज्ञप्तम् पृथिवीकायिकजीवानाम् एकेन्द्रियतया मनोवचसोरभावात् कायमात्रप्रणिधानमेव भवतीत्युत्तरम् । 'एवं जाव वणस्सइकाइयाणं' एवं यावद्वनस्पतिकायिकानामपि, अत्र यावत्पदेन अप्तेजोवायूनां संग्रहो भवतीति 'बेइंदियाणं पुच्छा' द्वीन्द्रियाणां पृच्छा हे भदन्त ! द्वीन्द्रियजीवानां कतिविध प्रणिधानं भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! थणियकुमाराण' असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार पर्यन्त ये तीनों प्रणिधान होते हैं । ऐसा जानना चाहिये। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पुढवीकाइयाणं०' हे भदन्त ! जो पृथिवीकायिक जीव हैं । उनके कितने प्रणिधान होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! एगे.' हे गौतम ! एकेन्द्रिय पृथिवीकायिक जो जीव हैं। उनके सिर्फ एक कायप्रणिधान ही होता है। क्योंकि इनके वचन और मनप्रणिधान नहीं होते हैं । इनका उस को अभाव रहता है । 'एवं जाव वणस्सइकाइयाण' इसी प्रकार का प्रणिधान होने विष. यक कथन अपकायिक, तेजःकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में भी जानना चाहिये । अर्थात् ये सब एकेन्द्रिय जीव हैं और इसी कारण से इनमें केवल एक ही कायप्रणिधान होता है । 'बेइंदियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितने प्रणिधान होते हैं-इस प्रश्न के जाव थणियकुमाराणं” असु२४माथी मारली. तनित भा२ सुधीनामाने ત્રણે પ્રણિધાન હોય છે. તેમ સમજવું. ગૌતમ સ્વામી ફરીથી પ્રભુને એવું पूछे छे हैं-"पुढवीकाइयाणं०" उ भगवन् रे पी४ि wो छ, तर કેટલા પ્રકારના પ્રણિધાન હોય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે"गोयमा ! एगे' हे गौतम ! मेन्द्रिय वी४ि २ , तेने त એક કાયપ્રણિધાન જ હોય છે. કેમ કે તેને વચન અને મનપ્રણિધાન डो॥ नथी. भन भने क्यनन तेमाने मला डाय छे. “एवं जाव वणस्सइ काइयाणं" मा प्रमाणे प्रणिधान डावान विषयनु थन-सायिक, તેજ કાયિક વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક જીમાં પણ સમજવું અર્થાત તે બધા એકેન્દ્રિય જીવે છે. અને તેજ કારણથી તેઓમાં ફક્ત એક કાય प्रणिधान थाय छे. “बेईदियाणं पुच्छा" 3 समपन्य वान टमा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩