Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचारचिन्तामणि टीका अध्य. १ उ.१ सू. ५ आत्मवादिप्र०
आत्मवादिप्रकरणम्यस्तु द्रव्यदिक्षु भावदिशु चात्मनो गत्यागती अवगत्य स्वमात्मानमेवं विजानाति-'अयमात्मा असिद्धगतिप्राप्तिचतुर्गतिषु घूर्णमानो जन्मान्तरसंक्रान्तत्रिकालवर्ती शरीराद् भिन्नो नित्यपरिणामी ज्ञानसम्यक्त्वचारित्रसुखवीर्यादिगुणवानिति, स एवात्मवादीत्याह-' से आयावादी' इत्यादि ।
मूलम्से आयावादी, लोगावादी, कम्मावादी, किरियावादी ॥ सू० ५ ॥
छायास आत्मवादी, लोकवादी कर्मवादी, क्रियावादी ॥ सू० ५॥
आत्मवादिप्रकरणजो जीव द्रव्य दिशाओं में और भावदिशाओं में आत्मा का गमन-आगन जान कर अपनी आत्मा के विषय में इस प्रकार जानता है कि-यह आत्मा सिद्धगति की प्राप्तिरहित चार गतियों में भ्रमण करता हुआ एक जन्म से दूसरे जन्म को ग्रहण करता है, त्रिकालवर्ती है. शरीर से भिन्न है, नित्यपरिणामी है, और सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र, सुख, वीर्य आदि गुणों वाला है, वही आत्मवादी है । अब इसी विषय का निरूपण किया जाता है :-'से आयावादी' इत्यादि।
__ मूलार्थ-'से आयावादी' इति । वही आत्मवादी है, लोकवादी है, कर्मवादी है, क्रीयावादी है ( सू० ५)
- આમવાદી પ્રકરણ જે જીવ દ્રવ્ય દિશાઓમાં અને ભાવદિશાઓમાં આત્માનું જવું–આવવું જાણીને પિતાના આત્માના વિષયમાં એ પ્રમાણે જાણે છે કે આ આત્મા સિદ્ધગતિની પ્રાપ્તિ વિના બીજી ચાર ગતિઓમાં ભ્રમણ કરતે કરતો એક જન્મથી બીજે જન્મ ગ્રહણ કરે છે, ત્રિકાલવતી છે શરીરથી ભિન્ન છે, નિત્યપરિણામી છે અને સમ્યકત્વ, જ્ઞાન, ચારિત્ર, સુખ, વીર્ય આદિ ગુણો વાળે છે, તે આત્મવાદી છે. હવે આ વિષયનું निर१५ ४२वामां आवे छे-'से आगवादी' छत्यादि.
भूमाथ-से अयावादी' ति. ते मामा छ, all छे, भी छे मन ठियावाही छे. (सू, ५) प्र. मा.-२७