Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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आचाराङ्गसूत्रे
क्षयान्मृत उच्यते, तदायुः । यद्वा-आनीयन्ते शेषप्रकृतयः उपभोगाय जीवेन यस्मिन्, तदायुः । यथा- कांस्यादिपात्रे शाल्योदनव्यञ्जनायो भोक्त्रा भोक्तुमानीयन्ते, तद्वत् ।
(६) नमयति = प्रापयति नारकादिसंज्ञां जीवमिति नाम । नामकर्मस्त्रिनवतिर्भेदाः भवन्ति ।
तत्र मूलभेदाः द्विचत्वारिंशत् । तथाहि
(१) गतिनाम, (२) जातिनाम, (३) शरीरनाम, (४) अङ्गोपाङ्गनाम, (५) निर्माणनाम, (६) वन्धननाम, (७) संघातनाम, (८) संस्थाननाम, (९) संहनननाम, (१०) वर्णनाम, (११) गन्धनाम, (१२) रसनाम, (१३) स्पर्श
और जिस के क्षय से मर जाता है, उसे आयुकर्म कहते है । अथवा जिस में जीव भोगने के लिए अन्य प्रकृतियों को लाता है वह आयु है, जैसे कांसे आदि के भाजन में चावल, ओदन, व्यंजन आदि वस्तुएँ भोगने वाला पुरुष लाता है, उसी प्रकार शेष प्रकृतियाँ आयु में भोगी जाती हैं ।
(६) नाम–कर्म के तेरानवे (९३) भेद - जो कर्म जीव को नारक आदि संज्ञाओं का पात्र बनाता है, वह नामकर्म कहलाता है । उसके तेरानवे भेद है । उन में भी मूल भेद बयालीस हैं, वे इस प्रकार - (१) गतिनाम, (२) जातिनाम, (३) शरीरनाम, (४) अङ्गोपाङ्गनाम; (५) निर्माणनाम, (६) बन्धननाम, (७) संघातनाम, (८) संस्थाननाम, (९) संहनननाम (१०) वर्णनाम, (११) गन्धनाम, (१२) रसनाम, (१३) स्पर्शनाम, (१४) आनुपूर्वीनाम,
પામે છે, તેને આણુક કહે છે અથવા જેમાં જીવ અન્ય પ્રકૃતિને ભાગવવા માટે લાવે છે તે આયુ છે. જેમ કે કાંસા આદિના વાસણમાં ચાખા, ભાત, વ્યંજન (શાક) આદિ વસ્તુઓ ભેગવવાવાળા પુરૂષ લાવે છે તે પ્રમાણે રોષ-પ્રકૃતિએ આયુમાં भोगवाय छे.
(૬) નામકર્મના ત્રાણુ (૯૩) ભેદ છે. જે ક જીવને નારકી આદિ સંજ્ઞાઓનુ पात्र मनावे छे, ते नाभम डेवाय छे, तेना त्रासु (-3) ले छे. तेमां या भूल लेह शेतातीस छे. ते या प्रभा-(१) गतिनाभ, (२) लतिनाभ, (3) शरीरनाभ, (४) मगोयांगनाभ, (4) निर्माणुनाभ, (१) संघननाभ, (७) सौंधातनाभ, (८) संस्थाननाम, (2) संसुनननाभ, (१०) व भान, (११) गं घनाभ, (१२) २सनाम, (१३) स्पर्शनाभ, (१४) भानु पूर्वी नाभ, (१५)