Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala
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(२)
महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. जेह नवि भव तस्या निरगुणी, तारशे केणी पेरे तेहरे । एम अजाण्या पड़े फंदमां, पाप बंधे रह्या जेहरे ।। स्वा० ॥४॥ व्याख्या-जेह कपटाचार निर्गुणी थका नवि के नहींज भव के० संसार तरया, तेह केणी पेरे के केवे प्रकारे बीजा लोकने वारशे ? कारण जहाल तारे पण शिला न तारे, एम अजाण्या थका दृष्टिरागी मूढ कुशुरुना फंदमां पढ़े छे. पाप वंधे के० पाप समुदायमां से रहा छे आत्मीर्य उल्लासी थया नथी. ॥ ४ ॥
काम कुंभादिक अधिकनु, धर्मर्नु को नवि मूलरे। दोकडे कुगुरु दाखवे, शुं थयुं एह जग सूलरे ॥ स्वा० ॥५॥ व्याख्या-कामकुंभ के० कामकलश आदि शब्दे चिंतामणि रत्न अने कल्पवृक्ष लेइए. ते थकी पण अधिको धर्म छे. जे धर्मनु कोइ मूल नथी. कारण अमूल्य वस्तु | मूल्य होय ?' ते धर्म गुरु दोकडे देखाडे छे, जे आटले द्रव्ये पाप जाय, आटले साहमी थाय. एह सर्व जगतनो शो मूल थयो जे सर्व आंघले आंधला चाले छे. ॥ ५ ॥
अर्थनी देशना जे दीए, ओलवे धर्मना ग्रंथरे ।
परम पदनो प्रगट चोरथी, तेहथी केम वहे पंथरे ॥ स्वा०||६ , व्याख्या-जे कुगुरु अर्थनी के द्रव्योत्पत्तिनीज देशना, कल्पित कथादिके करी दीए छे. धर्मना ग्रंथ जे श्रीदशवकालिंकादिक तेने ओलवे छे. शुद्ध मरूपताज नथी. एका प्रगट चोरयी परम पदनो मारग केम बहे ? अपितु न बहेज.जे माटे बेसणे वेसी शुद्धपरूपे नहीं, ते रखवाल नाम धरावी चोर थाय छे. ए अर्थ छे ॥ ६ ॥
विषयरसमां गृही माचिया, नाचिया कुयुरु मद पूररे।
धूम धामे धमाधम चली, ज्ञान मारग रह्यो दूररे ॥ स्वा० ॥७॥ व्याख्या-गृही के गृहस्थ ते विषय रसमांहेज राच्या. अनादि अभ्यास छे. अने मुगुरु काने न लाग्या ते बती अने कुगुरुने मदपूरे माच्या अन्न पान दावारना मान माटे निज उत्कर्षे हया, एम करतां बेहुने धर्मनी खटपट टली. ते माटें धूम धामे धमाधम चली, एटले उन्मार्गज चाल्यो इत्यर्थः । इहां धूमधाम के धकाधक तेणे करी धमाधम के० धींगामस्ती चाली. शुद्ध क्रिया वेगली रही अने अशुद्ध क्रियाना धणी डाक डमाला मोडे मोटाइमा माची आघा पडे केवल धींगाणुं भवत्यै.' वली पोते गृहस्थने प्रेरणा करे के, गाममा आवां विशेषे साहमा आव, विशेष सामैयुं करो, विशेष मभावना करो, मेम जिनशासननी उन्नति देखाय. ए धूम केमके कुमार्गजु वचन छे, जे कारणे पोतेज य

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