Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ३ । सात तत्त्वों संबंधी भूल अध्यात्मप्रेमी पण्डित दौलतरामजी ___व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व (विक्रम संवत् १८५५-१९२३) अध्यात्म-रस में निमग्न रहने वाले, उन्नीसवीं सदी के तत्त्वदर्शी विद्वान् कविवर पं. दौलतरामजी पल्लीवाल जाति के नररत्न थे। आपका जन्म अलीगढ़ के पास सासनी नामक ग्राम में हुआ। बाद में आप कुछ दिन अलीगढ़ भी रहे थे। आपके पिता का नाम टोडरमलजी था। प्रात्मश्लाघा से दूर रहने वाले इन महान् कवि का जीवन-परिचय पूर्णतः प्राप्त नहीं है। पर वे एक साधारण गृहस्थ थे एवं सरल स्वभावी, आत्मज्ञानी पुरुष थे। आपके द्वारा रचित ग्रंथ छहढ़ाला जैन समाज का बहुप्रचलित एवं समादृत ग्रन्थरत्न है। शायद ही कोई जैनी भाई हो जिसने छहढाला का अध्ययन न किया हो। सभी जैन परिक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रम में इसे स्थान प्राप्त है। - इसकी रचना आपने विक्रम संवत् १८९१ में की थी। आपने इसमें गागर में सागर भरने का सफल प्रयत्न किया है। इसके अलावा आपने कई स्तुतियाँ एवं अध्यात्म-रस से ओतप्रोत अनेक भजन लिखे हैं, जो आज भी सारे भारतवर्ष के मंदिरों और शास्त्र सभागों में बोले जाते हैं। आपके भजनों में मात्र भक्ति ही नहीं, गूढ तत्त्व भी भरे हुए हैं। ___ भक्ति और अध्यात्म के साथ ही आपके काव्य में काव्योपादान भी अपने प्रौढ़तम रूप में पाये जाते हैं। भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहमयी है, भर्ती के शब्दों का प्रभाव है। आपके पद हिन्दी गीत साहित्य के किसी भी महारथी के सम्मुख बड़े ही गर्व के साथ रखे जा सकते हैं। प्रस्तुत पाठ आपकी प्रसिद्ध रचना छहढाला की दूसरी ढाल पर आधारित है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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